________________
ज्यों था त्यों ठहराया
खड़ाऊं इसलिए पहनते हैं हिंदू कि ये खड़ाऊं को पकड़ने में अंगूठा दबा रहता है। और अंगूठे में वह नस है, जिससे ब्रह्मचर्य सधता है! अंगूठा दबा रहेगा--ब्रह्मचर्य सध जाएगा। अगर इतना आसान हो ब्रह्मचर्य का साधना--कि अंगूठा भर दबा रहे, तब तो बड़ी आसान बात होगी! नसबंदी करने की जरूरत नहीं। सिर्फ अंगूठे में नसबंदी कर दो। अंगूठे का ही आपरेशन कर देना चाहिए डाक्टरों को। वह नस बांध ही वहां; खड़ाऊं भी पहनने की जरूरत न रही। बांध ही दी नस भीतर से, कि तुम फिर बाहर से खोलना भी चाहो, तो खोल न सको। लेकिन हमारी मूर्खताओं को भी अगर कोई सोने की पर्त चढ़ाने की कोशिश करे, तो हम प्रसन्न होते हैं। अहा! धन्यभाग हमारे कि हम हिंदू घर में पैदा हुए। कैसे-कैसे ऋषि-मुनि हो गए! कैसी-कैसी चीजें खोज गए! हिंदू साधु-संत समझाते फिरते हैं कि हवाई जहाज और एटम, बम, सब...। वेद चुरा कर ले गए और वेदों में से ही सब खोज निकाला विज्ञान! वेदों में तो हर चीज है! मैं वेद को इस कोने से ले कर उस कोने तक छान गया। हवाई जहाज और एटम बम तो दूर--साइकिल बनाने की भी कोई विधि नहीं है! और साइकिल का पंक्चर हो जाए, तो उसको जोड़ने का भी कोई उपाय नहीं है। और बड़ा मजा यह है कि ये पश्चिम के लोग चुरा कर ले गए, जो न संस्कृत जानें, न वेद पहचानें। इन्होंने खोज लिया। और तुम पांच हजार साल से मूढो, क्या कर रहे हो? बैलगाड़ी में ही चले जा रहे हो! और तुम्हारे पास हवाई जहाज बनाने की तरकीब वेद में लिखी है! तुमसे न बना हवाई जहाज? क्या गजब के ऋषि-मुनि की संतान हो तुम भी! जिन्होंने हवाई जहाज बना लिए थे, पुष्पक विमान उड़ाते थे जो! कहानियों का भरोसा कर लेते हो--पुष्पक विमान! तो फिर कहना ही क्या है! तो फिर बंदर भी पहाड़ ले कर चलते थे। हनुमान जी पहाड़ ही ले कर उड़ रहे थे। कल्पनाओं का भी कोई हिसाब है! कपोल-कल्पित बातों को...। मगर अगर हमारे बाप-दादों के साथ जुड़ी हैं, तो हमारा अहंकार जुड़ा होता है। हम अपने अहंकार के पोषण के लिए कुछ भी कर सकते हैं, कुछ भी कह सकते हैं। एक मछलीमार मछली पकड़ रहा था। मुल्ला नसरुद्दीन उसके पीछे खड़ा देख रहा था। पूछा कि भई, अब तक बड़ी से बड़ी कोई मछली--तुमने कितनी बड़ी मछली पकड़ी? तुम तो जिंदगी भर से मछली मारते हो। उस आदमी ने कहा, अब उसका हिसाब बताना बहुत मुश्किल है। उसकी नापजोख भी होना बहुत मुश्किल है। जब मैंने बड़ी से बड़ी मछली पकड़ी थी, इतना ही कह सकता हूं कि पूरी झील एक फुट नीचे उतर गई थी।
और यह वही मछलीमार है, जिसको मुल्ला अच्छी तरह से जानता है। तीन घंटे से देख रहा है। अभी छोटी-सी भी मछली पकड़ में आई नहीं है। तीन घंटे से बंसी लटकाए बैठा है! मुल्ला भलीभांति जानता है इस मछलीमार को। क्योंकि एक दिन मुल्ला आ रहा था और यह मछलीमार, जहां बाजार में मछलियां बिकती हैं, वहां एक दुकानदार से कह रहा था, भैया, जरा मछलियां फेंक दो। चार मछलियां फेंक दो। जो पैसे हों, ले लेना!
Page 129 of 255
http://www.oshoworld.com