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ज्यों था त्यों ठहराया
वे गए-करे तो थे नहीं। भीतर के कमरे में ही बैठे थे। एकदम बाहर निकल कर आ गए--कि अगर दिन भर बैठना है, तो मैं दफ्तर भी नहीं जाने दूंगा। उनका मुकदमा था अदालत में। वे बोले कि भैया, मैं हाथ जोड़ता हूं। मैं माफी मांगता हूं। कान पकड़ता हूं--कि कभी अब तुमसे किसी तरह की बातचीत नहीं छेडूंगा इस संबंध में। अब मैं समझा कि क्यों तुम्हारे पिता मेरे ऊपर डाल दिए! तुम किसी की बनी-बनाई तुड़वा दो! तुम अपने घर जाओ। मुझे कुछ लेना-देना नहीं। तुम मुझे बख्शो! मैंने कहा, तुम यह कहो, तो बात अलग। मगर याद रखना, कभी भूल कर यह बात मत उठाना। क्योंकि मैंने भी सारे तर्क खोज निकाले हैं--विवाह के विपरीत। और सच तो यह है कि दुनिया भर का अनुभव यह है...। एक मित्र ने पूछा है, भगवान, मैं जब भी घर पर आपके प्रवचन का टेप सुनता हूं, तो मेरी पत्नी टेप बंद कर देती है। पुस्तक पढ़ता हूं, तो छीन कर रख देती है। उसका दावा है कि सिर्फ वही मुझसे सर्वाधिक प्रेम कर रही है। इतने प्रेम को समझने में मैं असमर्थ हूं। कृपया मार्गदर्शन करें। चंद्रपाल भारती ने पूछा है। अब क्या मैं मार्गदर्शन करूं! यह तो होना ही है। यह तो बिलकुल स्वाभाविक है। पत्नी बर्दाश्त नहीं कर सकती। पति बर्दाश्त नहीं कर सकते। क्योंकि पति अगर मुझसे जुड़ जाता है, तो पत्नी को लगता है--गया हाथ से! गया काम से! पत्नी मुझसे जुड़ जाती है, तो पति के अहंकार को चोट पहुंचती है--भारी चोट पहुंचती है! पति के अहंकार को यह चोट पहुंचती है कि मुझसे भी कोई ऊपर है तेरी दृष्टि में! जब मैं मौजूद हूं!...और पति यानी परमात्मा। तो फिर अब तू कहां जाती है? जिसका सत्संग करती है? यहीं पूना में डाली दीदी है। उसके पति को यही कष्ट है। डाली मुझे कहती थी कि मेरे पति कहते हैं: तुझे क्या पूछना है, मुझसे पूछ। अरे, जब मैं मौजूद हूं, तो कहां सत्संग करने जाना! क्या तुझे जानना है? परमात्मा के संबंध में जानना है? स्वर्ग के संबंध में जानना है? आत्मा के संबंध में? मैं तो बताने को मौजूद हूं। जब मैं कहूं कि मैं नहीं जानता, तब तू कहीं जा। और डाली मुझसे कह रही थी कि अब इनसे क्या पूछना! इनको मैं जानती हूं! ये क्या खाक जानते हैं? मगर कौन सिर पचाए! वे मेरी किताबें फेंक देते हैं। जैसे तुम्हारी पत्नी कर रही है। डाली के छिप कर मेरी किताब पढ़नी पड़ती है। और ऐसा नहीं कि उनकी मुझसे कोई दुश्मनी है। मुझसे उनको कुछ लेनादेना नहीं है। मगर अड़चन यह आ रही है कि उनकी पत्नी, उनसे ज्यादा किसी को आदर दे-तो अहंकार को चोट लगती है।
और पत्नी कोर् ईष्या जग जाती है। वह कुछ मुझसे विरोध में नहीं है चंद्रपाल भारती! मुझसे उसे क्या लेना-देना! उसका तो कुछ इतना ही कहना है कि उसकी मौजूदगी में--और तुम टेप सुन रहे हो--हद्द हो गई! पत्नी मौजूद है--और तुम किताब पढ़ रहे हो! यह बर्दाश्त के बाहर है।
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