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________________ ज्यों था त्यों ठहराया अब पिंकी, तेरे माता-पिता तो आदेश की भाषा में सोचते हैं--पंजाबी हैं। तो पंजाब में तो आदेश की भाषा चलती है। अब तू रंग में डूबेगी मेरे, तो झंझटें आएंगी, क्योंकि तेरे मातापिता तो आदेश की भाषा समझते हैं। उन्हें तेरा विवाह करना है; और मेरे रंग में डूबी, कि फिर यह विवाह वगैरह की झंझट खतम ! उनको बड़ी चिंता होगी उससे एक तो ये संत सपूत निकल गए...! अभी कल ही तो मैंने तुमसे कहा था न कि कबीर ने अपने बेटे को देख कर कहा कि बूढा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल ! ये कमाल पूत पैदा हो गए। वंश ही उजाड़ दिया। शादी ही नहीं की। फिर आगे बात ही न चली अब ये संत तो सपूत हैं। इन ने तो वंश उजाड़ा ! अब पिंकी, तू भी रंग गई इस रंग में तो उनको चिंता होगी। ये विवाह की फिक्र में लगे हुए हैं। वे लड़का खोज रहे हैं। वे जल्दी में हैं कि इसके पहले कि यह बिगड़े, इसका विवाह कर देना है तो जरा सावधान रहना। विवाह से सावधान रहना! भूलचूक मत करना। क्योंकि वह एक लंबी झंझट है। मुश्किल है। इसलिए तो सात चक्कर खिलवा देते हैं, चकरा जाता है! समझ में ही नहीं आता, अब क्या ऐसी भूलभुलैया है कि उसमें भीतर और सब भूलचूक कर लेना -- विवाह की उसमें फंसना आसान है --निकलना बहुत उसमें आदमी घनचक्कर हो जाता है! करना -क्या नहीं करना। फिर निकलने का रास्ता नहीं है तो घुस जाते हैं, फिर बाहर निकलते नहीं बनता । तुमने कभी देखा -- कभी पक्षी कोई कमरे में घुस आता है। अभी दरवाजे से ही घुसा है, और दरवाजे से ही निकल सकता है। मगर तुमने पक्षी को देखा कि वह क्या करता है! बंद खिड़कियों पर चोंच मारता है। दीवाल से टकराता है। छप्पर से सिर फोड़ लेता है। लहूलुहान हो जाएगा। और घबड़ाने लगेगा। जितना लहूलुहान होगा- दरवाजा मिलना मुश्किल हो जाएगा। आंख के सामने अंधेरा छा जाएगा। खोपड़ी छप्पर से टकरा गई। चाँच लहूलुहान हो गई--खिड़की से । घबड़ा गया ! और अभी-अभी यह आया है। - एक मित्र मेरे--वे कहते हैं कि विवाह से कैसे बाहर निकलना ? सात फेरे पड़ें चुके हैं! अरे, तो, मैंने कहा, तुम सात उलटे फेरे मार दो। खतम करो बात। जिस दरवाजे से आए, उसी से बाहर निकल जाओ! कहें, गांठ बंध चुकी! अरे, तो खोल दो। गांठ बांधी, तो कोई बड़ी भारी बात है! उठाओ कैंची काट दो, न खुलती हो तो ! फिर से अपनी असली स्थिति में वापस आ जाओ। छोड़ो यह चक्कर! वे कहते हैं, आप बात तो ठीक कहते हैं। मगर बड़ी मुश्किल है। बहुत झंझटें पाल ली हैं। आदमी एक झंझट जब पालता है, तो सिलसिला शुरू होता है। झंझट अकेली नहीं आती। एक झंझट अकेली नहीं आती। साथ में भीड़भाड़ लाती है! झंझट के पीछे झंझटें आती चली आती हैं। Page 113 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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