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ज्यों था त्यों ठहराया
धर्म को भी पुनरुज्जीवित होना पड़ता है। हर बार भगीरथ को गंगा को वापस लाना होता है-- तो गंगोत्री पैदा होती है। गहला तेता गाया! मगर शब्द में अटकना मत--शून्य में उतरना। शब्द में भटकना मत। गाने वालों ने गाया है। उनके इशारे पकड़ लेना; लेकिन उनके शब्दों की पूजा मत करना। लेकिन शास्त्रों की पूजा चल रही है! जन रज्जब ऐसी बिधि जानें...। रज्जब कहते हैं: मैं तो सीधा-सादा, साधारण जन हूं। मैं कोई पंडित नहीं। मैं कोई ज्ञानी नहीं। मुझे कुछ शास्त्रों का पता नहीं है। मुझे तो सिर्फ एक विधि का पता है; एक तरकीब जानता हूं; एक कीमिया मेरे हाथ में है। जन रज्जब ऐसी विधि जानें, ज्यूं था त्यूं ठहराया! बस, मेरे पास तो एक छोटा-सा सूत्र है कि जैसा था--मेरा स्वभाव, जैसा था जन्म के पहले--वैसा ही मैंने उसे ठहरा दिया है। और उसके ठहरने में ही सब पा लिया है। सब शास्त्र आ गए, सब सिद्धांत आ गए। सब बुद्ध आ गए; सब कृष्ण, सब क्राइस्ट--सब आ गए। क्योंकि कृष्ण ने भी कैसे पाया--ज्यूं था त्यूं ठहराया! और बुद्ध ने कैसे पाया--ज्यूं था त्यूं ठहराया! और जीसस ने कैसे पाया--ज्यूं था त्यूं ठहराया! तुम भी ठहरा लो--ज्यूं था त्यूं ठहरा लो। क्या है वह विधि? क्या है वह राजों का राज? क्या है वह रहस्य? छोटा-सा रहस्य है। ध्यान कहो उसे, तो चलेगा। जागरण कहो उसे, तो चलेगा। बोध कहो उसे, तो चलेगा। साक्षीभाव। बस, मन में जो चल रहा है--विचारों का सिलसिला, तांता, वह जो भीड़ मन में चल रही है--वासनाओं की, इच्छाओं की, ऐषणाओं की; स्मृतियों का प्रवाह बंधा हुआ है। कल्पनाओं का जाल बुना जा रहा है! अतीत और भविष्य के बीच तुम दबे जा रहे हो, पिसे जा रहे हो। कबीर कहते हैं, दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय! ये हैं दो पाट--अतीत और भविष्य--चक्की के दो पाट--इनके बीच पिसे जा रहे हो! साबित बचा न कोय। लेकिन कबीर ने यह पद गाया--दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय--तो कबीर के बेटे कमाल ने इसके उत्तर में एक सूत्र लिखा कि चक्की के बीच में कील लगी होती है, जिस कील पर चक्की का पाट घूमता है। कमाल था कबीर के बेटे का नाम। कमाल ने कहा कि सुनिए, कुछ बच जाते हैं--कुछ! कबीर ने कहा, कौन? कमाल ने कहा, वे, जो वह बीच में कील ठहरी हुई है, जो चलती नहीं है, जो ठहरी हुई है--जो सदा से ठहरी हुई है--उसका सहारा ले लेते हैं; वे बच जाते हैं। दो पाटों के बीच तो कोई नहीं बचता; उनमें पिसता ही है। लेकिन वह जो छोटी-सी कील खड़ी हुई है थिर, उसका जो सहारा ले लेता है...। इसलिए कुछ गेहूं के दाने बच जाते हैं। तुम चक्की चलाओ तो पता चलेगा। कुछ गेहूं के दाने बड़े होशियार! वे दोनों पाटों के बीच से सरककर कील के पास पहुंच जाते हैं। वे कील का सहारा ले लेते हैं। वहां नहीं पीस सकती चक्की ।
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