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वही 4 (4)/44 ब्रह्मचर्यस्य त्रयोऽर्थाः भवन्ति- आचारा: मैथुन विरति:
गुरुकुलवासश्च। वही 3(1)/4 ब्रह्म- आचार: सत्यं तपश्च। (अ) वही 5(2)/35 ब्रह्मचर्यम् - आत्मरमणं, उपस्थ संयमः, गुरुकुलवासश्च (ब) वही 3(2)47 सूयगडो (1)/6/23, टिप्पण संख्या 83 में उद्धृत वही (1)/1/72, सू (1)/14/1 वही (1)/14/1 के टिप्पण में उद्धृत (अ) चूर्णि पृ. 228, (ब) वृत्ति, पत्र 248 सूयगडो / (2)/5/1; 1/14/1 के टिप्पण में उद्धृत-चूर्णि पृ. 403 (अ) ठाणं 9/2 (ब) समवाओ 9/3 ठाणं 10/16 के टिप्पण संख्या 7 में उद्धृत - स्थानांग वृत्ति, पत्र 282,283 समवाओ 27/1 समवाओ 9/1 के टिप्पण संख्या 3 में उद्धृत - समवायांग वृत्ति पत्र 16 समवाओ 51/1 की टिप्पण संख्या 1 में उद्धृत नायाधम्मकहाओ, टिप्पण संख्या 6.17, पृ. 63 में उद्धृत ज्ञाता वृत्ति, पत्र 8 - "ब्रह्म-ब्रह्मचर्यं सर्वमेव वा कुशलानुष्ठानम्' दसवेआलियं 4/14 (अ) जैन आचार मीमांसा / पृ. 120 पर उद्धृत (ब) निरुक्त कोश, 1116 में
उद्धृत - उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ. 207 ठाणं 10/16 के टिप्पण संख्या 7 में उद्धृत - षट् प्राभृत द्वादशानुप्रेक्षा, श्लोक 80 ठाणं 10/16 के टिप्पण संख्या 7 में उद्धृत - तत्त्वार्थ वार्तिक पृष्ठ 595-600 आचारांग और महावीर पृष्ठ 285 में उद्धृत-आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति, भाग-2
पृष्ठ 181 सू.टी. 2 पृ. 119 (निरुक्त कोश में उद्धृत) सू.टी. 2 पृ. 119 (निरुक्त कोश में उद्धृत) उत्तराध्ययन चूर्णि पृ/207 (निरुक्त कोश में उद्धृत) अणु से पूर्ण की यात्रा, पृष्ठ 323 ब्रह्मचर्य विज्ञान
पृष्ठ 137 ब्रह्मचर्य विज्ञान
पृष्ठ 137 संस्कृत हिन्दी कोश पृष्ठ 723
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