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12. चन्दनों में गोशीर्ष चंदन के समान है। सांसारिक तापों से ब्रह्मचर्य गोशीर्ष चन्दन के समान शीतलता प्रदान करता है। संदर्भित उपमान से यह तथ्य प्रकाशित हो रहा है।
13. जैसे औषधियों, चमत्कारिक वनस्पतियों का उत्पत्ति स्थान हिमवान पर्वत है, उसी प्रकार आमीषधि आदि (लब्धियों) की उत्पत्ति का स्थान ब्रह्मचर्य है। संसाररोगोपशमनौषधियों की प्रसवभूमि ब्रह्मचर्य है- यह तथ्य अभिव्यक्त है।
14. जैसे नदियों में शीतोदा नदी प्रधान है, वैसे ही सब व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। यहां ब्रह्मचर्य की पवित्रता अभिव्यक्त होती है।
15. समुद्रों में जैसे स्वयंभूरमण समुद्र महान् है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य महत्त्वशाली है। यहाँ पर ब्रह्मचर्य की सर्व श्रेष्ठता, महानता तथा उदात्तता आदि गुणों की अभिव्यंजना हो रही है।
16. जैसे माण्डलिक अर्थात् गोलाकार पर्वतों में रूचकवर पर्वत प्रधान है, उसी प्रकार सब व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। उन्नतता, स्थिरता आदि तथ्य प्रस्तुत उपमान के द्वारा प्रकट हो रहा है।
17. इन्द्र का ऐरावत नामक गजराज जैसे सर्व गजराजों में श्रेष्ठ है, उसी प्रकार सब व्रतों में ब्रह्मचर्य मुख्य है। यहाँ पर ब्रह्मचर्य की गुणीय उत्कृष्टता प्रतिपादित है।
18. ब्रह्मचर्य वन्य जन्तुओं में सिंह के समान प्रधान है। इस उपमान से ब्रह्मचर्य की सर्व शक्तिमानता के साथ अप्रमादादि गुण युक्त होने से सर्व श्रेष्ठता अभिव्यंजित है।
19. ब्रह्मचर्य सुपर्णकुमार देवों में वेणुदेव के समान श्रेष्ठ है। यहाँ ब्रह्मचर्य की उदात्तता अभिलक्षित है।
20. जैसे नागकुमार जाति के देवों में धरणेन्द्र प्रधान है, उसी प्रकार सर्व व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। यहाँ पर ब्रह्मचर्य की सर्वश्रेष्ठता, सर्व प्रधानता तथा कुलीनता प्रतिपादित है।
21. कल्पों में ब्रह्मलोक कल्प के समान ब्रह्मचर्य उत्तम है। यहां उत्तमता अभिलक्षित
बित है।
22. जैसे उत्पाद सभा आदि इन पांचों सभाओं में सुधर्मा सभा श्रेष्ठ है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य है, इस उपमान से ब्रह्मचर्य की महिमा अभिव्यंजित है।
23. जैसे स्थितियों में लवसत्तमा अनुत्तर विमानवासी देवों की स्थिति प्रधान है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। यहाँ सर्वत्र ब्रह्मचर्य की प्रधानता की प्रतिपादना की गई है।
24. सब दानों में अभय दान के समान ब्रह्मचर्य सब व्रतों में श्रेष्ठ है। यहां ब्रह्मचर्य की श्रेष्ठता तथा निरापदता अभिलक्षित है।
25. ब्रह्मचर्य सब प्रकार के कम्बलों में कृमिरागरक्त कम्बल के समान उत्तम है। इस उपमान से ब्रह्मचर्य की वरीयता अभिव्यंजित है।
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