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कृतज्ञोऽस्मि नकार को सकार और निराशा को आशा में बदल देने वाली वैश्विक शक्ति का नाम है - गणाधिपति तुलसी। जिनके आभास मात्र से शिथिल होती आध्यात्मिक धारा प्रबलता से प्रवाहित होने लगती है। समस्याएं जिनके नाम मात्र से वैसे ही विलीन हो जाती है जैसे जाज्ज्वल्यमान सूर्य के उदय होने पर अंधकार। चन्द्रमा को निर्मलता एवं शीतलता का, सूर्य को स्व-पर प्रकाशता का, सागर को विराटता और गहराई का तथा स्वर्ण को कोमलता का पाठ पढ़ाने वाले पूज्य गुरुदेव की स्मृति भी निरन्तर प्रगति के लिए प्रेरित करती रही है। जिन्होंने चक्षु दिया, मार्ग दिया, जीवन दिया, सब कुछ दिया उन्हीं परम पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के श्रीचरणों में श्रद्धासिक्त कृतज्ञता।
करुणा के महासागर, समर्पण की जीवन्त मूर्ति, सरस्वती पुत्र, विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक जागृत प्रज्ञा के धनी, आचार्य महाप्रज्ञ के प्रति विनम्र कृतज्ञता। जिनका हर श्वास एक नया निष्कर्ष होता था, जिनकी लेखनी ने मेरी लेखनी में ही नहीं सम्पूर्ण जीवन में प्राणों का संचार किया। प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रत्येक अक्षर उस सम्यक् पुरुष की कृपा का ही प्रसाद है। पुनः पुनः नमन।
चित्ताकर्षक सौम्य मूर्ति, युवा चेतना के समुद्वाहक, देवत्व के धारक, तरुण तपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी के प्रति हार्दिक कृतज्ञता। जिनके मंगल आशीर्वाद के साथ उत्कृष्ट मार्गदर्शन से ही यह कार्य सम्पन्न हुआ। आपके चरणों में मेरी सर्वात्मना समर्पण की भावना उत्तरोत्तर वृद्धिंगत् होती रहे।
मातृहृदया परम श्रद्धेया संघ महानिर्देशिका साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभाजी का आशीर्वाद और उनकी सहज संलब्ध ऊर्जा इस कार्य में सहायक बनी है, उन्हें बार-बार अभिवन्दना।
पावन स्मृति करता हूँ, दिवंगत मुनि श्री गुलाबचन्द्रजी 'निर्मोही' की, जिनकी प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से श्रुत साधना की ओर मेरे चरण बढ़े, मेरे जीवन का निर्माण हुआ।
मुनिश्री धर्मेशकुमारजी, सघन साधक, गुरु दृष्टि आराधक, सूक्ष्म मेधा व विराट व्यक्तित्व के धनी युवा संत हैं। उन्हीं के सुसंस्कृत मार्गदर्शन में मेरी जीवन यात्रा सुचारू रूप से चल रही है। यह शोध प्रबंध उन्हीं की कृपा का फल है। बार-बार अभिवन्दना।
कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ मुनिश्री अजयप्रकाशजी के प्रति जिन्होंने मुझे समय-समय पर विविध कार्यों से मुक्त रखकर सहयोग प्रदान किया।
ग्रन्थानुक्रमणिका को व्यवस्थित करने में संसारपक्षीय भाणजी मुमुक्षु मधुश्री (अब साध्वीश्री मौलिकयशाजी) ने मनोयोग से समय और श्रम लगाया। उनके सर्वतोमुखी विकास की मंगलकामना।।
तेरापंथ धर्मसंघ का श्रावक समाज बड़ा ही श्रद्धा सम्पन्न एवं समर्पित है। मेरी स्वाध्याय यात्रा को अनवरत तथा निर्विघ्न प्रगति देने में अनेक श्रावकों का आधारभूत सहयोग रहा है। शोध प्रबंध के कम्प्यूटराइजेशन में तेरापंथी सभा चेन्नई का सहयोग मिला एवं श्री रमेशजी खटेड, चेन्नई का कुशलतापूर्वक श्रम लगा। प्रूफ जांचने में श्री विमलजी सेठिया, चेन्नै ने अपनी सूक्ष्म दृष्टि का मनोयोग से उपयोग किया। सबके हार्दिक सहयोग के प्रति कृतज्ञता, मंगलकामना।
अनेक साधु-साध्वियों, समण-समणियों एवं विद्धानों से भी समय-समय पर मार्गदर्शन एवं सहयोग मिलता रहा है। सबके प्रति हार्दिक कृतज्ञता एवं उनके आध्यात्मिक विकास की मंगलकामना करता हूँ।
- मुनि डॉ. विनोद कुमार 'विवेक' कारनोडै, चेन्नई दि.01.01.2011