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4.0. निष्कर्ष
जैन परम्परा एक विकासवादी परम्परा है। यहाँ आत्मा के क्रमिक विकास के लिए साधना के अनेक आयाम उपलब्ध हैं। ब्रह्मचर्य साधना का एक विशिष्ट अंग है। ब्रह्मचर्य समस्त साधना प्रविधियों का मूलाधार है, इसलिए इसके विकास में सबका विकास निहित है। जैन आगमों में ब्रह्मचर्य के विकास के लिए अनेक सूत्र मिलते हैं।
__भगवान महावीर ने काम विजय के लिए स्वयं अनेकों प्रयोग किए और सफलता प्राप्त की। ब्रह्मचर्य की विकास यात्रा भी ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप के मार्ग से होकर ही जाती है। इस साधना चतुष्क में ब्रह्मचर्य का क्रमिक विकास निहित है। ज्ञान - जैन परम्परा में समस्त तत्त्व-पदार्थों को तीन विभागों में विभक्त किया हैं
(1) हेय (2) ज्ञेय और (3) उपादेय। हेय का अर्थ है त्यागने योग्य पदार्थ। जो आत्म साधना में बाधक होते हैं। ज्ञेय का अर्थ है जानने योग्य पदार्थ। विश्व के सभी पदार्थ ज्ञेय हैं। उपादेय का अर्थ है ग्रहण करने योग्य पदार्थ। जो आत्म उत्थान में साधक होते हैं।
साधना की पूर्णता के लिए हेय को छोड़ना और उपादेय को ग्रहण करना आवश्यक है। हेय और उपादेय का विवेक करने के लिए सर्वप्रथम दोनों को ही जानना आवश्यक है। क्योंकि जब तक यह पता नहीं चलेगा कि असंयम क्या है। उसका स्वरूप क्या है, उसके होने से क्या हानि है तथा उसे त्यागने से साधक को क्या लाभ है, तब तक उन्हें त्यागा कैसे जाएगा? अतः ब्रह्मचर्य विकास का प्रथम चरण ब्रह्मचर्य विषयक ज्ञान है। दर्शन - ब्रह्मचर्य के विकास के लिए इसके प्रति अटूट श्रद्धा व रुचि का होना आवश्यक है। इसके साथ काम भोगों के प्रति दृष्टिकोण यथार्थ होना भी आवश्यक है। श्रद्धा की कमी के कारण चित्त में चंचलता और साधना के प्रति शंकाएं उत्पन्न हो सकती हैं। ये साधक को असुरक्षित कर देती हैं।
जब तक इसके प्रति श्रद्धा उत्पन्न नहीं होगी, इस क्षेत्र में कुछ भी विकास नहीं होगा। इतना ही नहीं, आगे बढ़ जाने के बाद भी यदि श्रद्धा शंका का स्थान लेती है तो साधक साधना के मार्ग को बीच में ही छोड़ भी सकता है। चारित्र - ज्ञान और दर्शन ब्रह्मचर्य के आधारभूत व सैद्धान्तिक साधन हैं। इसका क्रियात्मक साधन है - चारित्र। चारित्र में अब्रह्मचर्य का प्रत्याख्यान - त्याग कर दिया जाता है। जैन परम्परा में त्याग का अपना महत्त्व है। त्याग में अकरण का संकल्प और वैसा ही भाव आवश्यक है। संकल्प के अभाव में भोग न करना भी चारित्र नहीं माना जाता। चारित्र की कुछ कसौटियां हैं,
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