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5. ब्रह्मचर्य विकास के साधन
जीवन का ऊर्ध्वसंस्थापन, कला गत उपस्थापना, ओज-वीर्य और संस्कारों का परिरक्षण और अन्ततः आत्मभाव में रमण या चरण ब्रह्मचर्य पद वाच्य है। जैन वाङ्मय में ब्रह्मचर्य के स्वरूप, ब्रह्मचर्य के साधन, ब्रह्मचर्य रक्षण के उपाय, ब्रह्मचर्य की उपलब्धियां और ब्रह्मचर्य के परम लक्ष्यादि का प्रभूत विवेचन मिलता है। प्रस्तुत संदर्भ में ब्रह्मचर्य के विकास में सहायक संसाधनों का जैन परम्परा की दृष्टि से विवेचन काम्य है।
1.0.
साधन - विमर्श
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ब्रह्मचर्य के साधनों के विवेचन के पूर्व साधन क्या है ? इस तथ्य का निरूपण या विश्लेषण आवश्यक है। साथ संसिद्धौ धातु से ल्युट् (अन) प्रत्यय करने पर साधन शब्द निष्पन्न होता है, साध्यन्ति कार्याणि इति साधनानि अर्थात् कार्य की सिद्धि में सहायक होते हैं उन्हें साधन कहते हैं। आदि से लेकर अन्त तक जो क्रिया की फल प्राप्ति पर्यन्त सिद्धि में सहायक होते हैं उन्हें साधन कहते हैं। क्रियासिद्धी प्रकृष्टौपकारकं साधनमिति ।
सामान्य रूप से साधन और उपाय एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं लेकिन दोनों में अन्तर है। क्रिया अथवा कार्य को सहज रूप से आगे बढाने में जो उपयोगी होता है, वह साधन होता है, लेकिन 'श्रेयांसि बहुविघ्नानि भवन्ति' अर्थात् श्रेष्ठ कार्य करते समय बहुत से विघ्न भी आते हैं। वे विघ्न क्रिया को फल लाभ तक जाने में बाधित कर देते हैं। उन विघ्नों का विनाश जिन संसाधनों से होता है, वह उपाय है। उप समीपं अयवं गमनं वा उपायः अर्थात् जो विघ्नों को वारित करता हुआ कार्य को फल लाभ तक पहुंचा दे, उसे उपाय कहते हैं बाधक तत्त्वों का निरसन उपाय है, साधक तत्त्वों का आचरण साधन है। इसी भेद को ध्यान में रखकर ब्रह्मचर्य के साधन और ब्रह्मचर्य के उपाय का अलग-अलग अध्याय में विवेचन किया गया है। प्रथमतः उपायों के अनुशीलन के पश्चात् अब साधन का विवेचन काम्य है।
2.0.
ब्रह्मचर्य : विकास के साधन
जीवन में प्रत्येक दृष्टिकोण से ब्रह्मचर्य का स्थान अति महत्त्वपूर्ण है। अतः यह जानना आवश्यक है कि वे कौन से साधन हैं जिनके माध्यम से ब्रह्मचर्य का विकास होता है। भारतीय शास्त्रों में ब्रह्मचर्य को मात्र एक आदर्श के रूप में ही निरूपित नहीं किया गया है बल्कि इसकी साधना उत्तरोत्तर विकसित होती रहे, इसका विस्तृत मार्गदर्शन भी किया गया है।
उत्तराध्ययन सूत्र में मोक्ष मार्ग के चार भेद बताएँ गए हैं- ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ।' ब्रह्मचर्य मोक्ष का ही एक साधन है। कारण-कार्य संबंध होने से इसकी साधना के आयाम भी ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के अन्तर्गत समाहित किए जा सकते हैं। इसलिए ब्रह्मचर्य के
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