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तिरस्कार का कारण माना गया है। विशेषकर मुनियों के लिए कामनाओं की दासता साधारण लोगों के द्वारा भी निंदनीय है। ये मुनि जीवन को स्वीकार करके भी गृहस्थ जैसा आचरण करते हैं, इन्होंने वेश बदला है, वृत्तियां नहीं बदली।' ऐसे आक्षेपों के द्वारा उनका तिरस्कार होता है और उनकी निंदनीय प्रसिद्धि (बदनामी) भी होती है। 120
कामांध गृहस्थ भी सामाजिक, पारिवारिक परंपराओं और मर्यादाओं का उल्लंघन करता है तो वह समाज में निंदित और तिरस्कृत तो होता ही है, दण्डित भी होता है।
ठाणं सूत्र में ब्रह्मचर्य से रहित पुरुष के तीन स्थान गर्हित बताए हैं(1) इहलोक (वर्तमान) गर्हित होता है। (2) उपपात (देव लोक तथा नरक का जन्म) गर्हित होता है।
(3) आगामी जन्म (देव लोक या नरक के बाद होने वाला मनुष्य या तिर्यंच का जन्म) गर्हित होता है। 127
नायाधम्मकहाओ में विषयासक्त व्यक्ति को निंदा व अवहेलना का पात्र बताया गया है।
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दसवैकालिक सूत्र के व्याख्याकार जिनदास गणि महत्तर ने भी अब्रह्मचर्य को घृणा प्राप्त कराने वाला माना है। 129
भगवती आराधना और सर्वार्थ सिद्धि में भी अब्रह्मचर्य का परिणाम अपयश व गरे माना है। 130 2.4(3) कलह - आचारांग सूत्र में अब्रह्मचर्य को कलह का प्रमुख कारण माना है। सूत्रकार के अनुसार काम की सिद्धि न होने से कामुक व्यक्ति को क्रोध आ जाता है। इससे वह कलह करने लग जाता है। 1'कलह के तीन कारण - जर, जोरू और जमीन' यह प्रसिद्ध लोकोक्ति भी इसी
ओर इशारा करती है। 2.4(4) वैर की वृद्धि - आचारांग सूत्र में अब्रह्मचर्य के दुष्परिणाम के रूप में कहा गया है कि कामात पुरुष अपने वैर बढ़ाता है। 12 भगवती आराधना एवं सर्वार्थ सिद्धि आदि ग्रंथों में भी यही बात दोहराई गई है। 133 2.4(5) अशुभ संस्कारों की प्रगाढ़ता - आचारांग सूत्र में काम के आसेवन से होने वाले दूरगामी दुष्परिणामों का मनौवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। काम के आसेवन से कामनाएं समाप्त नहीं होती हैं। एक इच्छा की पूर्ति के साथ दूसरी इच्छा प्रकट हो जाती है। इस प्रकार कामनाओं के चक्र का कभी अंत नहीं होता।
___ कामनाओं की पूर्ति के बाद भी कामनाएं फिर से क्यों उभरती हैं? इस जिज्ञासा का समाधान सूत्रकार इस प्रकार देते हैं - ऐसा 'अनुवृत्ति के सिद्धांत' के कारण होता है। इसके