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2.3(2) हिंसा - आचारांग के अनुसार हिंसा के दो कारण होते हैं। प्रमाद और विषयार्थिता। वस्तुत: विषयासक्ति से आक्रांत पुरुष प्रमत्त हो जाता है और मन, वचन और शरीर से षट्जीवनिकायों की बार-बार हिंसा करता है। वस्तुत: काम वासनाएं ही मनुष्य को हिंसा के लिए प्रेरित करती हैं। 111
भगवती सूत्र में गणधर गौतम के यह पूछने पर कि मैथुन सेवन करने वाले के कैसा असंयम होता है? भगवान महावीर कहते हैं कि गौतम! जिस प्रकार कोई पुरुष तपी हुई शलाका से रुई से भरी हुई नालिका अथवा बूर से भरी हुई नालिका को ध्वस्त कर देता है। गौतम! मैथुन सेवन करने वाले जीव के ऐसा असंयम होता है। 12वृत्तिकार ने स्त्री पुरुष के संभोग से स्त्री की योनि में उत्कर्षत: नौ लाख पंचेंद्रिय जीवों की हिंसा बताई है। 113
भगवती जोड़ में जयाचार्य ने संभोग के समय असंज्ञी (अमनस्क) जीवों का पैदा होना बताया है किंतु उनकी संख्या का कोई निर्देश नहीं मिलता। मुनिश्री सुमेरमलजी 'लाडनूं' ने यह संख्या असंख्य मानी है। 115
कामासक्ति की तीव्र आग से व्यक्ति के हृदय की करुणा का स्रोत सूख जाता है। उपासकदशांग सूत्र के आठवें अध्ययन में श्रावक महाशतक की पत्नी रेवती द्वारा अपनी बारह सोतों की हत्या कर देना इसका ज्वलंत प्रमाण है। 116
दसवैकालिक और उत्तराध्ययन सूत्र में भी कामांधता को हिंसा का एक मूल कारण माना गया है। 17
आगमेत्तर साहित्य में भी आचार्यों ने मैथुन से महाहिंसा का विस्तृत वर्णन किया है। स्याद्वाद् मंजरी के अनुसार स्त्रियों की योनि में दो इंद्रिय जीव उत्पन्न होते हैं, इन जीवों की संख्या एक, दो, तीन से लगाकर लाखों तक पहुंच जाती हैं। जिस समय पुरुष स्त्री के साथ संभोग करता है उस समय जैसे अग्नि से तपाई हुई लोहे की सलाई को बांस की नली में डालने से नली में रखे तिल भस्म हो जाते हैं, वैसे ही पुरुष के संयोग से योनि में रहने वाले संपूर्ण जीवों का नाश हो जाता है। इतना ही नहीं, पुरुष और स्त्री के एक बार संभोग करने पर स्त्री गर्भ में अधिक से अधिक नौ लाख पंचेद्रिय मनुष्य उत्पन्न होते हैं। इन नौ लाख मनुष्यों में से एक या दो जीव जीते हैं बाकी सब जीव नष्ट हो जाते हैं। 118
संबोधि में भी कहा गया है कि मनुष्य प्राप्त भोगों की रक्षा के लिए हिंसादि का आचरण करता है और उससे वह रौद्र बन जाता है। 19
इनके अतिरिक्त प्राचीन कथा साहित्य तथा आधुनिक काल के सूचना तंत्र में काम वासना के आवेश में हत्याओं के दृष्टांत भरे हुए मिलते हैं। 2.3(3) असत्य - उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार जो व्यक्ति काम भोगों में आसक्त होता है
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