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जगालामाकना कर।
अर्थ-शरत्कालीन चंद्रमाके समान कांतिवाले श्री चंद्रप्रभ भगवानका यह मंत्र दश सहस्त्र जपसे सिद्ध होकर अनेक फल
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तमने दक्षिणे वामे, पृष्टे च सं जपेत्क्रमात् । वद्यमानं जिनं ध्यायेत्, शक्रार्क श्रींदु चक्रिमिः ॥ २॥ __अर्थ-इस मंत्रको क्रमसे भगवान्के आगे दाहिने बाएं और पीछे जप करे फिर उन भगवान्का ध्यान इंद्र सूर्य लक्ष्मी चंद्रमा और चक्रवर्ति रूपसे करे ॥२॥
जपोस्य सर्व मप्यर्थ, साधये दमि बांछितं । विनिहंति च निःशेष, मभिचारोद्भवं भयम् ॥३॥
अर्थ-इस यंत्रका जप सब इच्छा किये हुए प्रयोजनोंको सिद्ध करता है। और सब मारण आदि अनुष्ठानोंसें पैदा हुए भयोंको नष्ट करता है ॥३॥
अभिषेको गव्यैर्वा, क्षीर तरु त्वक् कुषा सलिले । वातोय ; संजप्तः, क्षुद्र ग्रह हृद्भवेदमुना ॥४॥ ___अर्थ--उन भगवानका गौ के दूध अथवा दूधवाले वृक्षोंकी छालके बनाए हुए जल अथवा केवल जलसे अभिषेक कर के जप करनेसे सब क्षुद्र ग्रह नष्ट हो जाते हैं ॥४॥
॥ इति श्री चंद्रप्रभ स्तवनम् ॥
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रक्षक यंत्र-परिच्छेद तीन श्लोक २५ से २८.
पृ० २५
इति उबाबामालिनी करुन कम्पूर्णम्।