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दशम परिच्छेद ।
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चालामालिनी कल्प। मागधी-- असुल सुल विलसन लनाय सेविव पदे,
नमिल जय जंतु तुदिनसिव पुल पदे । चलन पुल निलद सिंसालि सलसी लुदे,
देहि महसा मिवं सालि सासद पदे ॥६॥
तलिता खिलतो सतया सतनं,
मदना नल नील मनान गुणं । नलिना रुण पात तलां पमते,
जिननो इधतं सशिवं लभते ॥ ७॥ चूलका पैशाचिककल नालिक नातुल सच्च हलं,
चलनो कल चालु यशप्प सलं। लल नाचन कीत कुनं लुचिलं,
चिन लावम हंस मला मिचिलं ॥ ८॥ अपभ्रशसासय सुख निहाणु नाहन दिठो जेहिं तउं 'पुन बिहूण उजाणु निफल जं मुतिहं नर पशुहं ॥ ९॥ निम्मल तुह मुह चंदुजे पहु पिकाखुइं पसरिसिउं इय निरूवय आणं दुतिह मुनि सामी विष्फुरइ ॥१०॥
द्वयं सम संस्कृतं हारि हार हर हास कुंद संदर देहा भय । केवल कमला केलि निलय मंजुल गुण गण मय ।। कमला रुण करचरण चरण भर धरण धबल। बल सिहिर मणि संगम विलास लाल समल मवदल ॥ ११ ॥ भव नव दव जल वाह विमल मंगल कुल मंदिर। वाम काम कर केलि हरण हरिधर गुण बंधुर ॥ मंदर गिरी गुरु सार सबल कलि भू रूह कुंजर ।
देहि महोदय मेव देव सग केवलि कुंजर ॥ १२ ॥ इति जगदभिनंदन जन हृदि चंदन चंद्र प्रम जिन चंद्रवर। पड़ भाषा भिष्टत मम मंगल युत सिद्धि सुखानि विभो बिस्तर।।१३
॥ इति श्री शिन प्रभ सूरि कृन चंद्रप्रभ समितिबन ममाप्रम् ।। ॐ नमो भगवते चंद्रप्रभाय चन्द्रन्द्र महिताय,
चंद्र प्रभावमिति सर्न मुख रंजिनी स्वाहा। प्रभाते उदक मभि मंत्र्य मुखं प्रक्षालयेत् ,
सर्वजन प्रियो भवति । ___अथ चंद्रप्रभु मंत्र ॐ नमो भगवते चंद्रप्रभ जिनेंद्राय,
चंद्र महिताय कीर्ति मुख रंजिनी स्वाहा ॥ चंद्रप्रभ जिन स्यास्प, शरचंद्र समुद्यतैः। मंत्रो नेक फल: सिद्धि, मावास्यऽयुत जाप्यतः ॥१॥