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ज्वालामालिनी वरूप ।
दशम परिच्छेद।
। १३१ अथ ज्वालामालिनी विधि
प्रौ पः पन्च्यूं आत्मरक्षां कुरु२ ह्रौं फट्स्वाहाः” इदं मंत्र २१ वार
पढे, वपु रक्षाकारयेत् जाप्य होमा कर्षणं कृत्वा स्तोत्रं पठनीयं चतुर्दशी पुष्पार्के उपवासं कृत्वा जाप १२००० त्रिसंध्यं
बस्वाभरणे नाह्वाननं दत्वा एक पूर्जा १४ द्विपूर्वा १४-१५ अर्थ रात्री एवं ४८००० एकासनेनेदं मंत्राक्षरेण "क्षांक्षी ऑक्षों
त्रिपर्वा त्रयोदशी चतुर्दशी अमावस्या इति ज्ञात्वा स्थापनीयं कृष्ण क्षः रून्यू र र र र र र शवन्मदेय२ नाशं कुरु२ स्वाहा" ॥
पक्षे झां झी मुझौं झःझल्ब्यू अंजसंचकार अचुक भूषणानि
संग्रहातां संग्रहातांर सन्निधिकरणं प्रातरुत्थाय करणीयं आं क्रों अनेन होमं कुर्यात्
ही इदं मंत्रेण विसर्जनं कुर्यात् कुमारी भोजन दानं पश्चात् भोजन ह्रीं क्लीं ब्लू छां छीं छ' छौं छः छम्न्च्यूँ ख ख ख क्रियते सर्वकार्य सिद्धिः॥ खादय२ शत्रुन् भस्म कुरु२ स्वाहा" ।
॥ इति संधि सूत्र प्रथम संधि समाप्तम् ॥ जाप्य होम विधि
अर्थ-चतुर्दशी पुष्य नक्षत्रके सूर्यमें उपवास करके निम्न चतर्भज मति महिषवाहन पीतवर्ण अंशुक रक्तवर्ण उज्वल लिखित मंत्रका एक आसनसे प्रातःकाल मध्याह्न काल सायंकाल भषणं महिष श्यामवर्ण तस्याभरण पीतवर्ण खङ्ग त्रिशूल पाशआर अद्धरात्रि बारह२ हजार जप करे । अर्थात च्यारों समय में शरासना युधं उत्तमासनेन स्थापितं तस्याग्रे जाप्यं रक्त पीत्त ४८०००पूर्ण करे ॥ मंत्र यह हैउज्वल फलानि मध्प रा लवंग जाप्यं ॥
ॐ शांक्षी खूशौं क्षः क्षल्ब्यू रर र र र र र शत्रून्मर्दय२
मर्दय नाशं कुरु२ स्वाहा।" होम विधि
जाप और होम की विधि षोडशांगुल कुडं चतुरस्र अवगाहित मध्ये होमं पंचामृत
पहिले देवीकी एक मूर्ति बनाये, मूर्तिमें निझ लिखित दशांगपूपैः खीर खांड नालिकेरैः शरीर संस्कार विस्नान पीत
विशेषताएं रक्खे-च्यार भुजाएं, महिषकी सवारी, शरीरका रंग जलेन हां ह्रीं ह्र हो ह्रः हल्ल्यू अनेन सप्त वाराभि मंत्र शिखा
पीला, देवीके वस्त्रोंका रंग लाल, उज्वल आभूषण, महिषका रंग रक्तां बरं धार्यते पीतासने पद्मासनेन उपावशत् "पात्राभूषाम, उसके आभूषणोंका रंग पीला, देवीके चारों हाथों में क्रमसे