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मलम परिच्छे ।
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जवालामालिनी कल्प। राजावर्तभ्रामकदिवसकरावर्वमदजटामांसि । नृपपूलिकेशचंदन बालागिरिकर्णिका श्वेता ॥ १२ ॥
अर्थ-राजावत भ्रामक दिवस कर आवर्तमद जटामांसी नृपपूलि केशर चंदन बालागिरि श्वेत कर्णिका ॥ १२ ॥ श्रोतोजन नीलांजन सौवीराजन रसांजनान्यपि च ।। पाहि सिंह केशर शार्दूल नखं च विकृतश्च ॥ १३ ॥ अर्थ-श्रोतांजन नीलांजन सौवीरांजन रसांजन पक्ष
FI अहिसिंह केशर शार्दूल नख विकृत ॥ १३ ॥ गौरोचनाऽश्व बंदन हरिकान्ता भृङ्ग तुत्थ मित्येषां । चूर्ण मलक्तक पटले विकीर्य परिवेष्ट्य कुरुवर्ति ॥१४॥
अर्थ-गोरोचन अश्व वंदन हरिकांता मृग और तुस्थके चूर्णको अलक्तक पटल पर बखेर कर लपेट कर बत्ती बनावे ॥ १४ ॥
सूत्रेण पंचवर्णेन परिवृतां भाक्येत तरुक्षीर। कारुक कुच भव पयसा पुनरपितां भावयेत्सम्यक् ॥ १५॥ ___ अर्थ-फिर उस बत्तीको पांच रंगके तागोंसे लपेटकर । वृक्षोंके दूधमें भावित करे और उस बत्तीको कारुकीके दधौ । मावित करे ॥ १५॥
AVRAN वातथा प्रदीपं विबोध्य कपिलाधृतेन सिद्धस्थाने । धतूरभंग मर्दित नवखपजनं द्रियते ॥ १६ ॥ Hamar
र अर्थ-उस बत्तीको सिद्धस्थानमें कपिला गऊके धीमें डालकर दीपक जलावे और फिर धतूरा और भांग मले हुए नए खपेटक पर अंजन बनावे ॥ १६॥
ॐ हरिणी हरिणी स्वाहा मंत्र पठतांजनं दायं । प्रपठं स्तमेव मंत्र करोतु नयनांजनं चापि ॥ १७ ॥
अर्थ- “ॐ हरिणी हरिणी स्वाहा ।"
यह मन्त्र पढता हुआ अंजन बनावे । और इसी मंत्रसे अंजनको आंखोंमें भी लगावे ॥ १७ ॥ सकल जगदेकरंजनमंजनमिदमातनोति सुभगस्त्वं । स्त्रीपुरुषराजवश्यं करोति नयने द्वयं भक्त ॥१८॥
5 अर्थ-इस संपूर्ण जगतके एक ही अंजनको आंखोंमें लगानेसे सुन्दरता बढ़ती है। और स्त्री-पुरुष, तथा राजा तक चशमें हो जाता है ॥१८॥
सुखदायक अंजन भ्रामकहिमनीलांजनबालालक्ष्मीसुमोहिनीभक्ताः। व्याघ्रनखी हरिकांतावरकंदे रोचनायुक्त ॥१९॥
अर्थ-प्रामक, हिम, नीलांजन, बाला लक्ष्मी, सुमोहिनी, भक्ताव्याघ्रनखी, हरिकांता, वर कन्दगौरोचन, और ॥ १९॥
केकिखेत्येतेषामलक्तपटले विलिख्य संचूर्ण। प्रागुक्त विधिसमेतं जनरंजनमनरंजनं तदिदं ॥२०॥