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चालामान ५।
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सप्तम परिच्छेद ।
मुख सुगंधि कर तिलक पावकवर्जितलक्ष्मी सहदेबी कृष्ण मल्लिका तुलसी। हरिकांता नरकंदेश्वरि शीतोशिरपिकाश्च ॥ ८॥
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अर्थ-बिमा अग्निकी लक्ष्मी सहदेवी कृष्णमलिका मालती हार कांता नरकंद इश्वरि शीत शिर पक्की
हिक्का तुलसी पद्मकमिति समभागं मुषारमलिलेन । पुष्पे चन्द्राभ्युदये मुकन्यकापेषयेत्सर्च ॥४॥
अर्थ-हिका, तुलसी और पद्मकको समभाग लेकर पुष्य नक्षत्रमें चंद्रोदय होनेपर शीतल जलसे कन्यासे पिसवावे ॥४॥
तिलकं कुर्यादमुना विदधात्वथवांज तथान्योन्य। है.तिलकखिभवनतिलको गजमदकुनटिशमीपुष्षः॥५॥ . अर्थ-गजमद, कुनटि. शमीपुष्प इसका तिलक तथा अंजन दोनों ही तीन लोकको जीतते हैं ॥५॥
सर्व वशीकरण तिलक नरकन्दपत्रकन्याहिमपयोत्पलमुकेशरं कुष्टं । . हरिकान्तामलयरुहं विकृतिस्तिलको जगद्वशकृत् ॥ ६॥
अर्थ-नरकन्द, पत्रकन्या, हिम, पद्म उत्पल, केशर, कुष्ट, हरिकान्ता, मलयरूह और विकृतिका तिलक सम्पूर्ण जगतको वशमें कर देता है॥६॥
क सर्व वशीकरण तिलक कनकसहजातपुष्पैर्मलनजनृपलोचनामृगमदैश्च । समभागेन ग्रहीतस्तिलकं त्रैलोक्यजनवशकृत् ॥ ७॥ ____ अर्थ-कनक पुष्प, सहजात पुष्प, मलयज, नृपलोचन, और कस्तूरीको ममान भाग लेकर तिलक करनेसे तीन लोक वश में हो जाते हैं।॥ ७ ॥
जातिशमीकुसुमयुगं दमनक गौरोचनापमार्गश्च । काश्मीरकाय्यकमृगमद धतूरकमरुगपत्राणि ॥९॥...
अर्थ-जाति पुष्प शमी पुष्प दमनक गोरोचन अपामार्ग काश्मीरक कार्यक मृगमदधतूरा अरुग पत्र ॥ ९॥
शर पुखकनैति च समभागग्नहीतदिव्य शुभ तंत्रः। पुष्पा संयुक्त र्मुख वासो भवे तिलकः ॥१०॥
अर्थ-शरपड और कनैतिको समान भाग लेकर पुष्य नक्षत्र में तिलक करनेसे मुखमें सुगंधि होती है ॥१०॥
गीकरण अंजन.
सव वशीकरण अंजन लोहरजः शरपुची सहदेवी मोहिनी मयूरशिंखा। काश्मारकुष्टमलयजकप्पू रशमीप्रसनं च ॥११॥
अर्थ-बोहरज शरपुडी सहदेवी मोहिनी मयूरशिखा काश्मीर कुष्ट मलयज कपूर शमी पुष्प ॥११॥