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रायबहादुर हीरालालजे ने इन्द्रनन्दीकी गुरु-परम्परा इस
द्राविड-गण
ईन्द्रनन्दी
वामपनन्दी
वर्षनदी
इनन्दी
हर्षनन्दी
ईन्द्रनन्दी (इस प्रन्थ के रचयिता) श्री कापडियाजीने इस अन्धको स्व०५० चन्द्रशेखरजी शास्त्रीने अपनी भाषा टीका सहित जो प्रति लिखी थी उसके आधार पर छापा है। इसमें अन्धके अंतमें प्रन्थ कर्ताको प्रशस्ति नही है। इस प्रशस्ति में प्रन्थ रचनाका समय आदिकी महत्वपूर्ण हकीकत है जो रायबहादुर हीरालालजीने दी है और जो मैंने जैनसिद्धांत-भवन, बाराकी एक प्रतिमें भी देखी है। दशम परि
छेदके अन्त के बाद, भारावाली प्रतिमें (पृ०३७ से) निम्रलिखत पाठ हैद्रविण समय मुख्यो जिनपतिमार्गोचितक्रियापूर्णः ।
व्रत समिति गुप्तिगुप्तो हेखाचार्यों मुनिर्जयतु ।। यावरिक्ष तजधिशश काम्बर साराकुलाचला
स्वाबद्-हेडाचार्योक्ताथै स्थेयाच्छ्रोवालिनीकल्पः ।।
[९] मासीनिन्दादिदेवस्तुतपदकमश्रीन्द्रनन्दिमुनीन्द्रो ।
म नित्योद्यत्मचरित्रविमलजनिधौतपापोषलेपः ।। " xxxxबामळोद्यत्प्रगुणगुणभृतोत्तीणसिद्धा
'ताम्भोगशिषिलोकयम्बुजवनविचरत पद्यशो राजहंस ।। यवृत्त दुरितारिसैन्यहनने चण्डानिधारायते ।
चितं यस्य शरस्सरः मलिलवत्स्वच्छ सदा शीतकम् ॥ कीर्तिः शारदकौमुदीशशमृतो ज्योत्स्नेव यस्थामला ।
स श्रीवासवनन्दि सन्मुनिपतिः शिष्यत्तदीयो भवेत् ।। शिष्यस्तस्य महात्मा चतुरनियोगेषु चतुरमिति विभवः ।
श्री वर्षनधिगुरुरिति बुधमधुपनिसेवितपदानः।। बोके यस्य प्रसादादजनि मुनिजनः मरपुराणार्थवेदी। .
यायाशास्तम्मभूधस्यतिविमलयशश्रीवितानो निबद्धः।।। »xxxxपौराणिकविवृषमाद्योतितास्तत्पुराण
व्याख्यानादू-हर्षनन्दि प्रथितगुणस्तस्य किं वय॑तेऽत्र ।। शिष्यस्तस्येन्द्रनन्दि विमन्गुणगणोद्दामधामाभिरामः
प्रज्ञतीक्ष्णासधाराविमलितबहलाज्ञानबही वितानः । जैने सिद्धान्तवार्थो विमलिहूदयस्तेन ग्रन्थतोऽयं,
हेलाचार्योदितार्थो व्यरवि निरुपमो वाहिनीमन्त्रबादः ।। अष्टाशतैकष्टिप्रमाणशकवत्सरेबतीतेषु ।
भीमान्यखेटकटके पर्वण्यक्षयतृतीयायाम् ।। शतवहितपतुःशतपरिमाणप्रन्टरपनया युक्तं ।
श्रीकृष्णराजराज्ये समाप्तमेतन्मतं देव्याः॥ इति हेवाचार्यप्रणीतार्थे श्रीमदिन्द्रनन्दियोगीन्द्रविरचितप्रन्थसंदर्भ वाडिनी-मते विधाकारपरिलेखन समाप्तम् ।।