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ज्वालामाडिमी कल्प। शाकिन्योऽप स्माराः पिशाचभूतग्रहाच नश्यन्ति । निविषतां यातिविषं तैलस्यामुल्यनस्येन-॥ २०॥ ८२
अर्थ-इस विष तैलकी सुगन्धीसे ही शाकिनी, अपस्मार, पिशाच, भूत और अन्य ग्रह निर्विष हो जाते हैं ॥२०॥ इतिश्री हेलाचार्य प्रणीत अर्थ में श्रीमान् इन्द्रनन्दि मुनि विरचित प्रन्थमें ज्वालामालिनी कल्पकी, प्राच्य विद्यावारिधि काव्य साहित्य तीर्वाचार्य श्री चन्द्रशेखर शास्त्री कृत भाषाटीकामें "भूता कम्पन तेलविधिनामक
पंचम परिच्छेद समाप्त हुला ॥३॥
अथ षष्टमा परिच्छेद
सर्व रक्षा यन्त्र नामावेष्ट्यसकार सान्तल पर ग्लौं युग्म पूर्णदुभिः दिव्य क्ष्माक्षरमस्तकै परिवृतं कोणस्थरान्त वृत्त। बाह्ये षोडश पत्र पद्ममथ तत्पत्रेषु देया स्वराः। काणक्ष्माक्षरादग्गतन्द्र सहितं बाह्येच भमंडलं,
। अर्थ-एक सोलह दलवाला कमल बनाया जावे, उसके प्रत्येक पत्रके ऊपर स्वरोंको लिखना चाहिये। उस कमलके बाहर पत्तोंके कोणों में क्रमसे निम्नलिखित बीज लगाने चाहिये। ___ अ, ए, क, च, त, प, य, श, ह्री, ग्लौं, ग्लों, र पल और स उसकी कणिकामें नामको स. ह. व. ग्लौं ग्लौ और पूर्णचन्द्रसे वेष्टित करे, और सबके बाहर पृथ्वी मंडल बनावे ॥१॥ एतत्तु सर्वरक्षा यंत्रं लिखितं सुगन्धिभिद्र व्यैः । अपहरति रोगपीड़ामपमृत्यु ग्रह पिशाच भयं ॥ २ ॥
अर्थ-यह सर्व रक्षा यन्त्र है। सुगन्धित द्रव्योंसे लिखा जाने पर रोगकी पीडा, अप मृत्यु, भय ग्रह और पिशाचको दूर करता है ॥२॥
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