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ज्वालामालिनी कल्प। अर्थ-और भूतके घरमें भूतके दिन भूतकी पृथ्वी पर मंडपके नीचे मङ्गल और बुधके अंशके निकलने पर पकाना आरम्भ करे ॥१२॥ कार्यासकांस गोमय रविकर वितिपतित वहिना सम्यक् । खदिर करना शमी निंब समिद्भिः पचेवद्वहुद्भिः॥१३॥
अर्थ-उस क्वाथको सूर्य की किरणोंसे दी हुई अग्निसे कपास, कांस, गोबर, खैर, करंज, आक, शमी और नीमकी लकड़ीसे अच्छी तरह पकावे ॥ १३ ॥ क्षिप ॐ स्वाहा बीजः सकलीकरणं विधाय निजदेहे। तैरेव बीजमंत्रः पक्तुः सकलीक्रियां कुर्यात् ॥ १४ ॥
अर्थ-क्षिपॐ स्वाहा' इन बीजोंसे अपने सकलीकरण । "करके उन्हीं बीज मंत्रोंसे पकानेकी सब क्रिया करें ॥ १४ ॥ तत्सर्वधान्यसम्पलवण घृतैरिंधनान्वितै थुन्यां। आपाकांतं मंत्री होमं कुर्यात् स होममंत्रेण ॥ १५ ॥
अर्थमंत्री पुरुष उस तेलके पकने तक होमके मंत्रोंसे सब धान्य सरसों नमक और घीको कुण्डमें डालर कर होम । करता रहे ॥ १५॥ नीरसभावं गत्वा काथोद स्थल गतो यथा भवति।। भूताकंपनतैलं मृदुपाकगतं तथा सिद्धं ॥१६॥
पंचम परिच्छेद ।
[६९ अर्थ---जब यह काथ निरस होकर जमीन पर रखने जैसा हो जावे, तौ वह मृदु पाकसे बनाया हुआ भूता कम्पन तैल सिद्ध हो जाता है ।। १६॥ भोर हिंगुर्मणिद्धिछलैला हरिताल पलत्रिक कटु त्रितयं । रजनी द्वितीयं सर्पप लशुनं रुद्राक्ष दान्य वचाः ॥ १७ ॥
" अर्थ-हींग, मनसील, इलायची, हरताल, तीन परिमाण पल और त्रिकुट (सोंठ पीपहलका मिर्च) दोनों रजनी (हन्दी) सरसों, लहसुन, रुद्राक्ष, दान्य और बच ॥ १७ ॥
अजमोद लवण पंचकमरिष्ट फलमुदधिफलमथ त्रिवृता । एतानि प्रतिपाकं संदद्यादुतारि तैलेन ॥ १८॥
अर्थ-अजमोद, पांचों नमक, अरिष्टफल, समुद्र फल तथा त्रिवृता इन वस्तुओंको प्रत्येक पाकके साथ तेलमें मिलावे ॥ १८ ॥
पश्चात् खङ्गै रावण विद्या मंत्रेण मंत्रयेन्मंत्री। दश शत वारानेवं विधिनातैः सुसिद्धं स्यात् ॥ १९॥
अर्थ-फिर मंत्री पुरुष उस तेलको खङ्गै रावण विद्या मंत्रसे एक सहस्रवार विधिपूर्वक अभिमंत्रित करै ॥१९॥