________________
४८ 1
मालिनी कल्प।
गानि दंड शक्त्यसिपाश महा तुरंग दात्र शूल करान् । परिलिख्य लोकपालान मध्ये माता कृतिं विलिखेत् ॥८॥ YE अर्थ - इनके हाथमें क्रमसे बज्र अनि दंड शक्ति तलवार पाश, महातुरंग, दात्रि और शूल देकर इन लोक पालोंके बीच में माताकी आकृति बनावे ॥ ८ ॥
गंधाक्षत कुसुमाद्यैः स्वकीय मन्त्रैः प्रपूजयेत्सर्वान् । सामान्यमंडलमिदं भूतसमुच्चाटने प्रोक्तं ॥ ९ ॥
अर्थ- फिर सबको गंध, अक्षत, और पुष्प आदिसे अपने २ मंत्रोंसे पूजे । यह भूतोंका उच्चाटन करनेवाला सामान्य मन्डल कहा ।। ९ ॥
urs as as कान् पूर्वादिक्षु विनियुक्तान् । क्रमश स्तान् द्वादशविध मन्त्रान् हे लोकपालकात्मद्वारं ॥ १० अर्थ- दो एक, दो एक, दो एक, दो एक इन पूर्व आदि दिशाओं में क्रमशः लगाये हुए बारह प्रकारके मंत्रोंको हे लोकपालो ! स्वीकार करो ॥ १० ॥ द्विर्बंध गंध पुष्पं धूपं दीपाक्षतं बलिं चरु कं ।
गृह दूप होमान्तान् स्वकीय मन्त्रान् बुधाः प्राहुः ॥ ११ ॥
अर्थ- दोनों प्रकारके बंध, गंध, पुष्प, दीप, धूप, अक्षत, बलि, और चरुको दोनों प्रकारके होम ज्वालामालिनी के अंत में अपने मन्त्रोंसे ग्रहण करो ऐसा पंडित कहें ॥ ११ ॥
चतुर्थ परिच्छेद ।
[ ४९
ॐ ह्रीं
स्वर्ण वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण
स्वायुध वाहन वधू चिह्न स परिवार हे इन्द्र ! एहिर संवौषट् आह्वाननम् ॥ १ ॥
ॐ ह्रीं
वर्ण वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण वायु वाहन वधू चिह्न स परिवार हे इन्द्र ! तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ॥ २ ॥
ॐ ह्रीं स्वर्ण वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधू चिह्न स परिवार हे इन्द्र ! मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् ॥ ३ ॥
ॐ ह्रीं
स्वायुध वाहन वधू चिह्न स इदमर्थ्यं पाद्यं गन्धमतं गृह २ स्वाहा | अर्चनम् ।
स्वर्ण वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण परिवार हे इन्द्र ! आत्म द्वारं रक्ष२ पुष्पं दीपं धूपं चरुं बलिं फलं
ॐ ह्रीं
यूँ
स्वर्ण वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधू चिह्न स परिवार हे इन्द्र ! स्वस्थानं गच्छ२ जयः ३ विसर्जनम् ।
ॐ ह्रीं क्रों झन्यू रक्त वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधू चिह्न से परिवार हे अग्ने ! एहि एहि संवौषट् । [आह्वाननम् ॥ १ ॥
ॐ ह्रीं क्रों झन्यू रक्त वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधू चिह्न स परिवार हे अग्ने ! तिष्ठ२ ठः ठः स्थापनम् ॥
४