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[४] इस ग्रन्धके मुख पृष्ठपर हमने प्रकट किया था किभागे हम ज्यालामालिनी कल्प" भी प्रकट करनेकी भावना रखते हैं 'ऐसा पढ़कर हमारे पास इस कल्पके लिए मांग आती ही रहती
थी। इसलिए हमने पं०चंद्रशेखरजी शाबीसे पत्रव्यवहार करके इस "पालामालिनी कल्प" मंत्र-शाल जो हिन्दी अर्थ व यंत्रमंत्र साधन विधि अहित है. देहलीसे मंगा लिया था जिसको भी प्रकट करने में अनेक कार्यवशात् बिलंच मा वो भी वर्ष होता है कि वह मन्त्र-शाखाज हम साधन विधि व यंत्र मंत्र पवित्रक्ट कर रहे हैं।
जब "भैरव पद्यावती कप बारहवीं शताब्दिमें श्री महीषणसरिने रचा था, और यह "वालामालिनी का यंत्र-शास्त्र मुनिराजश्री इन्द्रनन्दीने दशीं शताब्दिमें रचा था। यह मंत्रशखर परिच्छेदों में शास्त्रोक्त मन-चाहे विधान करीव ७५ प्रकार की साधन विधि अहित हैं तथा इसमें उसकी साधमाके २३ मंत्र भी बड़ा भारी खर्च करके दिये गये हैं।
"भैरव पद्मावती कल्प" की प्रस्तावना तो श्री०५० चंद्रशेखरजी शास्त्रीने लिख दी थी लेकिन ज्यालामालिनी कल्प' को हमने छापकर पूर्ण किया और आपको इसकी प्रस्तावनाके लिये देहली लिखा गया तब बायके पुत्र श्री चन्द्रमणिका पत्र माया कि हमारे पिताजी (पं० चन्द्रशेखरजी शाखी) तो १ वर्ष हुये गुजर गये है शादि। सब इमने इस यंत्रशाखापर किसी महान बिद्वानसे प्रस्तावना लिखाना सचित समझा ब ऐसे विद्वान् हमें मिल गये जिनका नाम है-प्रो० उमाकांत प्रेमानन्द शाह एम. ए. पी. एच. डी. बड़ीदा। बाप यंत्रशासके बड़े भारी बिद्वान हैं। बड़ौदामें बोरिएंटल इनस्टीटयूट में उच्च पद पर पामोन हैं तथा आप जैन रिसर्च के मार्गदर्शक हैं। बापने इस मंत्र शाखाकी प्रस्तावना बड़ी विद्वत्तापूर्वक लिख दी है जिसके लिये हम आपका हार्दिक सपकार मानते हैं।
इस प्रन्धके श्लोकोंको जहांतक हो हमने शुद्ध किये हैं तो भी इसमें अशुद्धियां रह गई हैं ऐसा प्रस्तावना लेखाएका अभिप्राय है तो भी सभी श्लोकोंका हिन्दी अर्थ जो ठीकर किया गया है।
हमारे ८ वें तीर्थकर भगवान चन्द्रप्रभुकी कुछदेवी श्री बाबामाकिनी थी सह के नामसे ही यह मंत्र शास रचा गया है जो अक्षरशः पढ़ने, मनन करने साधना करने योग्य है। हाँ, यह कार्य बडे परिश्रमका अत: बहुत कम भाई बहिन इसकी साधना कर सकेंगे तो भी यह मंत्र शास्त्र प्रत्येकको स्वाध्याय करनेयोग्य तो है हो।
इस ग्रन्धकी कोपी में, यंत्रों के उठोक बनाने में तथा आजकलकी छपाईकागजकी मंहगी में भी हमने इस प्रन्धको प्रकट करने का साहस किया है। बाशा है इस मंत्र शास्त्रका भी शीघ प्रचार हो जायगा ।। बीर सं.२४९२, सं. २०२३) निवेदक:भाद्रपद वदी ५ रविवार मूलचंद किसनदास कापड़िया-सूरत सा.४-९-६६
-प्रकाशक