________________
ज्वालामालिनी कल्प
अर्थ- दंष्ट्रा, शृङ्गल, दनु, शाखिल, शशनाग, ग्रीवाभंग, और उच्चलित यह छह अपस्मार ग्रह या अदिव्य ग्रह कहे गये हैं ॥ २१ ॥ फिटक
ये ते ग्रहा दिव्या मुंचति न जीवितं विना पुण्यात् । साध्यास्तंत्रेप्येषां मंत्रं ध्याने पुनर्भस्तः ॥ २२ ॥
१८३
अर्थ - यह अदिव्य ग्रह विना विशेष पुण्यके जीता नहीं छोड़ते, मंत्र शास्त्रसे इनका निवारण सीखकर कष्ट दूर करना चाहिये।
इतिश्री देवाचार्य प्रणीत अर्थमें श्रीमान् इन्द्रनन्दि मुनि विरचित ग्रन्थ स्वाबामालिनी कल्पकी काव्य साहित्य तीर्थाचार्य प्राच्य विद्यावारिधि श्री चन्द्रशेखर शास्त्री कृत भाषाटीका में दिव्यादिव्य प्रहाधिकार नामक
द्वितीय परिच्छेद समाप्तम् ॥ २ ॥
1
तृतीय परिच्छेद ।
तृतीय परिच्छेद सकलीकरण क्रिया
[ १९
सकलीकरणेन विना मन्त्री स्तंभादिनिग्रहविधाने । असमर्थस्तेनादौ सकलीकरणं प्रवक्ष्यामि ॥ १ ॥
अर्थ मन्त्री पुरुष स्तंभन आदि निग्रहके विधानमें सकलीकरण क्रियाके विना सफल नहीं हो सकता । अतएव आदिमें मैं सकलीकरण क्रियाको कहूंगा ॥ १ ॥
उभयकरांगुलिप मंहं सं तथैव तं बीजं । ferrer तेन पश्चात्कुर्यात्सर्वांगसंशुद्धिं ॥ २ ॥
अर्थ- दोनों हाथोंकी उंगलियों के जोडोंमें वं, मं, हैं, सं और तं, बीजाक्षरोंको रखकर फिर सब अंगोंकी शुद्धि करे ॥ २ ॥
वामकरांगुलिप सुरां, री, रू, रौं, रः, न्यसेच्च रं बीजं । ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रः पुनरेतान्यपि विन्यसेत्तद्वत् ॥ ३ ॥
अर्थ – बाएं हाथ की उंगलियों के जोडोंमें रां, रीं हूं, रौं और रः बीजको रखकर फिर उसी प्रकार ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रौं और हः बीजोंको रक्खे ॥ ३ ॥