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सम्पादकीय
'जैनॉलॉजी परिचय' के इस धारा की पाँचवी किताब, विद्यार्थियों के सामने रखते हुए, हम सार्थ गौरव की अनुभूति कर रहे हैं।
__ हर साल की किताब में कुछ न कुछ अलग देने का प्रयास हम करते हैं । परिचय के प्रस्तुत भाग में गुर्जरनरेश जैनधर्मी राजा कुमारपाल और उसके प्रेरक आचार्य हेमचन्द्र इनकी रोचक कहानी धारावाही तरीके से देने का प्रयास किया है । जैनविद्या की एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ है - जैनकला । भारतीय कलासंवर्धन में जैनों का योगदान सुचारु औसंक्षिप्त रूप में अंकित किया है।
यद्यपि जैनधर्म का प्रारम्भिक साहित्य, प्राकृत भाषा में निबद्ध है तथापि जैन आचार्यों द्वारा लिखित, संस्कृत ग्रन्थों की मात्रा भी प्रचुर है । जैन तत्त्वज्ञान की दृष्टि से, तत्त्वार्थसूत्र का महत्त्व अनन्य साधारण होने के कारण, प्रस्तुत किताब में उसकी पृष्ठभूमि दी है । सद्य:कालीन स्थिति में जैन युवक-युवतियों का झुकाव धार्मिकता और आध्यात्मिकता से ज्यादा, वैश्विक नीतिमूल्यों की ओर आकर्षित हो रहा है । जैन आचार्य सोमदेव द्वारा लिखित संस्कृत सूत्र इन्हीं नीतिमूल्यों का उत्कृष्ट दिग्दर्शन करते हैं।
पिछले चार साल की किताब में, दिया हआ प्राकृत व्याकरण ध्यान में रखकर, थोडी अधिक जानकारी इस किताब में दी है । किताब के अन्तिम भाग में प्राकृत भाषा में निबद्ध तीन पाठ हिन्दी अर्थसहित दिये हैं। उनमें से दो राचक कथाएँ हैं और तीसरा है भ. महावीर का संक्षिप्त चरित्र ।
हम आशा करते हैं कि शिक्षक और विद्यार्थी दोनों, किताब का मन:पूर्वक स्वागत करे । सन्मति-तीर्थ अध्यक्ष मा.श्री. अभयजी फिरोदिया के प्रोत्साहन के लिए हम उनके शुक्रगुजार है।
डॉ. नलिनी जोशी मानद सचिव, सन्मति-तीर्थ
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