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(५) चारित्त (चारित्र)
(सूचना : दूसरी और तीसरी गाथा में दियेहुए पाँच प्रकारके चारित्र के नाम ध्यान में रखने के लिए कठिन है । इसलिए शिक्षक ये दो गाथाएँ न पढाएँ । उसी प्रकार गाथा क्र. आठ और नौ पर भी प्रश्न नहीं पूछा जायेगा ।)
प्रस्तावना :
जैनधर्म में त्रिरत्न संज्ञा प्रसिद्ध है । वे हैं - सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्र । जैन परिभाषा में ‘चारित्र' शब्द 'चारित्र्य' नहीं लिखा जाता क्योंकि चारित्र्य का मतलब है character जो प्रमुखत: शीलवाचक है । चारित्र शब्द की अर्थव्याप्ति इससे जादा है । मन, वचन और काया के सभी आचार, विचार, वर्तन ‘चारित्र' शब्द में अंतर्भूत है। इसलिए सम्यक्चारित्र का अंग्रेजी अनुवाद right conduct किया जाता है ।
भावार्थ स्पष्टीकरण : (१) पंच समिईओ ---
प्रस्तुत गाथा में आठ बातों को प्रवचन की माताएँ कहा है । माता जिस प्रकार अच्छे संस्कारों के द्वारा बाल्क को दुनियाँ में व्यवहारयोग्य बनाती है, उसी प्रकार पाँच समितियाँ और तीन गुप्तियाँ साधु को चारित्रसंपन्नबनाती है । (अ) पाँच समिति (Fivefold regulation of activities) :
सम्यक प्रवत्ति अर्थात अच्छा आचरण ‘समिति' है । समितियाँ पाँच हैं। १) ईर्या-समिति (carefullness in walking) : अच्छी तरह से देखभालपूर्वक चलना 'ईर्या-समिति' है । २) भाषा-समिति (carefullness in speech) : सत्य, हितकारी, परिमित और संदेहरहित बोलना, ‘भाषासमिति' है। ३) एषणा-समिति (carefullness in food) : एषणा-समिति का मुख्य अर्थ भोजन का विवेक है । तथापि शय्या, वस्त्र, पात्र आदि के बारे में जागरूक रहना भी ‘एषणा-समिति' है । ४) आदान-निक्षेप-समिति (carefullness in lifting and laying down) : वस तुओं को लेने का और रखने का विवेक, 'आदान-निक्षेप-समिति' है। ५) उत्सर्ग-समिति (carefullness in depositing waste products) : मल-मूत्र, यूँक आदि का उचित स्थान पर, सावधानीपूर्वक विसर्जन करना, 'उत्सर्ग-समिति' है।
समितियों का पालन करना याने पर्यावरण की रक्षा करना है । इसका पालन करने से घर, परिसर, राष्ट्र स्वच्छ और सुंदर रहेगा।
(ब) तीन गुप्ति (Threefold restraints of activites) : __खुद की यथेच्छ प्रवृत्तियोंपर विवेकपूर्वक रोक लगाना 'गुप्ति' है । १) काय-गुप्ति (controlofbodily activities) : शारीरिक व्यापार का नियमन करना 'कायगप्ति' है। २) वचन-गुप्ति (control of speech activities) : बोलने के प्रत्येक प्रसंग पर या तो वचन का नियमन करना या मौन धारण करना 'वचन-गुप्ति' है । ३) मन-गुप्ति (control of mental activities) : बुरे विचारों का त्याग करना और अच्छे विचारों का सेवन करना 'मनोगुप्ति' है।
जैनधर्म में छोटी-छोटी प्रवृत्तियोंपर बडी गहराई से ध्यान दिया है । चलने, खाने, बोलने, सोचने में भअहिंसा