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________________ है । दोनों एकदूसरे से अच्छी तरह जुडे, तब ही निर्वाण तक पहुँच सकते हैं । (८) उवसमइ किण्हसप्पो इस गाथा में हृदय को कृष्णसर्प की उपमा दी है । सर्पों की सब जातियों में कृष्णसर्प सबसे जहरीला और प्राणघ होता है । साप कितना भी जहरीला हो, मंत्रपूर्वक विधि का जानकार उस सर्प को तथा सर्पविष को शांत कर सकता है । हृदय को कृष्णसर्प कहने का कारण यह है कि हृदय में याने अंत:करण में कषाय एवं विकार भरे ही रहे हैं । उन अगर उपाय न करे तो वह ऐहिक और पारलौकिक दोनों दृष्टि से घातक हो सकते हैं । शुद्धज्ञान का उचित मात्रा में किया हुआ प्रयोग, हृदयरूपी कृष्णसर्प को शांत कर सकता है । विकारों पर काबू रखने की यह ताकद ज्ञान की विशेषता है । यह विशेषता इस गाथा के द्वारा अधोरेखित की है । (९) णाणमयविमल इस गाथा में ज्ञान को शुद्ध और शीतल जल की उपमा दी है । 'औषधं जाह्नवी तोयं ।' (गंगा का शुद्ध पानी औषध है ।) इस सुवचन में जिस प्रकार गंगाजल को औषधसमान माना है उसी प्रकार ज्ञानरूपी एक जल, जरा, मरण, वेदना तथा दाह आदि विविध रोगों पर इलाजस्वरूप होता है । व्याधियाँ चाहे कितने भी प्रकार की हो, यहाँ ज्ञानरूप औषध एक ही है । ज्ञानरूप जल प्राशन करने की एक शर्त है, वह आदमी भव्य याने मुमुक्षु होना चाहिए और उसने श्रद्धपूर्वक जल पीना चाहिए । उसी प्रकार जैनशास्त्र के अनुसार ज्ञान भी श्रद्धासहित होना चाहिए । आश्चर्य की बात यह है कि औषध लेकर आदमी निरोगी तो हो जाता है लेकिन वैद्य नहीं बनता । ज्ञानजल के प्राशन से व्यक्ति खुद सिद्ध भी बन सकता है । भावपाहुड की इस गाथा में अर्थों की विविध छटाएँ आचार्यश्री ने तरह भरी हुई है । (१०) मायावेल्लि असेसा इस गाथा में मोह को महावृक्ष की एवं माया (ढोंग, कपट) को लता की उपमा दी है । इस उपमा से मोह और माया का अलगअलग स्वभाव और प्रभाव व्यक्त किया है । मायारूपी लता मोहवृक्षपर ही आरूढ होती है । उस लता पर विविध, आकर्षक पुष्प भी होते हैं । ये फूल नि:संशय, घातक है - यह वस्तुस्थिति ज्ञानी जानता है । ज्ञानस्त्री शस्त्र से मायावेल्ली काट भी डाल सकता है । अब बात यह है कि वही शस्त्र मोहवृक्षपर चलता है या नहीं ? मोह तो वर्मों का राजा है । उसके बंध अतीव दृढ है । यहाँ ज्ञानरूपी शस्त्र परिणामकारक नहीं होता । दृढशील पालन याने चारित्र की आराधना ही मोहपर विजय पा सकती I इस गाथा में ज्ञानरूपी, शस्त्र की मर्यादा कथन करने का मुख्य उद्देश नहीं है। 'ज्ञानरूपी शस्त्र, मायापर काबू कर सकता है', इस मुद्दे पर यहाँ विवरण है । स्वाध्याय- ४ १) ‘पढमं नाणं तओ दया' इस सूत्र का मतलब तीन-चार वाक्यों में समझाइए । (गाथा १ भावार्थ) २) ज्ञान के पाँच प्रकारों के नाम लिखिए । (गाथा २ अर्थ ) ३) द्रव्य, गुण और पर्याय ये संज्ञाएँ सुवर्ण के उदाहरण से स्पष्ट कीजिए । ( चार-पाँच वाक्य ) ( गाथा ३ भावार्थ) ४) सच्चा ज्ञानी कर्मबंध से कैसे बचता हैं ? (पाँच-छह वाक्य ) (गाथा ४ भावार्थ) ५) मिथ्यादृष्टी ज्ञान का आराधक क्यों नहीं होता ? (दो वाक्य ) (गाथा ६ भावार्थ ) ६) 'तम्हा णाण-तवेणं संजुत्तो लहइ निव्वाणं' - स्पष्ट कीजिए । ( चार-पाँच वाक्य) (गाथा ७ भावार्थ) ७) हृदयरूपी कृष्णसर्प किस प्रकार शांत किया जा सकता है ? (तीन - चार वाक्य ) (गाथा ८ भावार्थ)
SR No.009953
Book TitleJainology Parichaya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherSanmati Tirth Prakashan Pune
Publication Year2010
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 KB
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