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गिरनार की गौरवयात्रा
गिरनार महातीर्थ की तलहटी में श्री आदिनाथ भगवान के जिनालय में दर्शन कर गिरनार गिरिवर के प्रवेश द्वार के अंदर बायें हाथ की तरफ चढान में हनुमान का मंदिर आता है । दायें हाथ की तरफ पुलिसचौकी के पास बालब्रह्मचारी श्री नेमिनाथ भगवान के चरण पादुका की देवकुलिका (देरी) आती है। वह विशाश्रीमाली श्रावक लक्ष्मीचंद प्रागजी ने बंधवायी थी। उसमें श्री नेमिप्रभु की पूर्वाभिमुख चरणपादुका और शासन तथा तीर्थ की अधिष्ठायिका श्री अंबिकादेवी की प्रतिमा पबासण की दीवार
गिरनार महातीर्थ की यात्रा के लिए पधारे हुए सभी भाविकजनों को यात्रा प्रारंभ करने से पहले इस देवकुलिका के दर्शन अवश्य करके अपनी यात्रा निर्विघ्नतया परिपूर्ण हो इस भावना से शासन और तीर्थ के अधिष्ठायिका को अवश्य प्रार्थना करनी चाहिए।
गिरनार की यात्रा में सुगमता के लिए वि.सं. १२१२ में अंबड श्रावक ने सुव्यवस्थित सीढियाँ बनवायी । उसके बाद समय-समय पर उसके उद्धार करवाने के लेख भी मिलते हैं।
इस देवकुलिका के दर्शन करके आगे १५ सीढियाँ चलने के बाद डोलीवालों का स्थान आता है। वहाँ से आगे बढ़ते हुए लगभग ८५ सीढियों के पास पाँच पांडवों की देवकुलिका आती है, जिन में से चार देवकलिका बायी तरफ और एक देवकलिका दायीं तरफ थी । वर्तमान में उनके पुराने स्थापत्य देखने को मिलते हैं। आगे २०० सीढियों के पास चुनादेरी अथवा तपसी प्याऊ का स्थान आता है। आगे ५०० सीढियों के पास दायीं तरफ छोडीया प्याऊ का स्थान आता है, जहाँ अब विश्राम के लिए नया स्थान बनवाया गया है। वहां से आगे जाते हुए बायीं तरफ एक रायण वृक्ष आता है, जहाँ पानी की प्याऊ है, ८०० सीढियों पर खोडियार मा का स्थान आता है, आगे लगभग ११५० सीढियों के पास बायीं तरफ जटाशंकर महादेव की देवकुलिका आती है। वहाँ से जटाशंकर महादेव के स्थान पर जाने के लिए रास्ता है । १२०० सीढियों के बायीं ओर एक नया विश्रामस्थान बनवाया गया है। आगे १५०० सीढियों का स्थान धोंलीदेरी के नाम से पहचाना जाता है वहाँ पर भी विश्राम के लिए नया स्थान बनवाया गया है। आगे लगभग १९५० सीढियों का स्थान कालीदेरी के नाम से पहचाना जता है। वहां भी विश्राम के लिए नया स्थान बनवाया गया है। यहाँ जो पुराना मकान है, उस पर आज भी 'धनीपरब' की तख्ती देखने को मिलती