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राग : सौ चालो सिद्धगिरि जईये...
सौ चालो गिरनार जईये, प्रभु भेटी भवजल तरीये;
सोरठ देशे तरवार्नु मोटुं जहाज छे.... सौ० १ ज्यां सन्यासीओ होवे, धर्मभावथी गिरिवर जोवे;
अर्बु सुंदर जूनागढ गाम छे.... सौ०२ ज्यां गिरनार द्वार आवे, विविध भावना सौ भावे;
अर्बु मोहक रळीयामणुं आ स्थान छे.... सौ०३ ज्यां तळेटी समीपे जातां, आदेश्वरना दर्शन थातां;
धर्मशाळा ने बगीचो अभिराम छे.... सौ० ४ ज्यां गिरि चढतां जमणे, अंबा सन्मुख उगमणे;
मस्तके पगलां प्रभु नेमिकुमारना छे.... सौ० ५ ज्यां गिरि चढता भावे, भव्यात्मा कर्म खपावे;
अवो मारग मुक्तिपुरी जाय छे.... सौ०६ ज्यां चडाण आकरा आवे, दादानी याद सतावे;
जपतां हैये हाश मोटी थाय छे.... सौ० ७
ज्यां पहेली ढूंके जांता, दहेराना दर्शन थातां;
प्रभुने जोवा हैयु घेखें थाय छे.... सौ० ८ ज्यां अतित चोवीसी मांहे, सागरप्रभुना काळे
इन्द्रे भरावेल मूरतना दर्शन थाय छे.... सौ० ९ ज्यां शतत्रण पगलां चडतां, गौमुखीओ पाद धरतां,
चोवीस प्रभुनां पगला पावनकार छे.... सौ० १० ज्यां अंबा-गोरख जातां, शांबप्रद्युम्नना पगला देखातां;
नमन करतां सौ आगळ चाली जाय छे.... सौ० ११ ज्यां पांचमी ढूंके पहोतां, मोक्षकल्याणक प्रभुनु जोता;
रोमे रोमे आनंद अपार छे.... सौ० १२ ज्यां सहसावने जातां, दीक्षा-नाण प्रभुना थातां;
पगले पगले कोयलना टहूकार छे.... सौ. १३ ज्यां जिनशासनना पाने, प्रथमचोमासु तळेटी थावे;
छत्रछाया हिमांशु सूरि राय छे.... सौ. १४ ज्यां वीर छव्वीससो वरसे, हेम नव्वाणुं वार फरशें;
प्रेम-चंद्र-धर्मनी पसाय छे.... सौ. १५