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परमात्मा की प्रतिमा का प्रभाव
भारत देश की धन्यधरा पर मुगल साम्राज्य चल रहा था । धर्म जनूनी अनेक मुगल बादशाहों ने जिनेश्वर परमात्मा के शासन को बहुत नुकशान पहुचाया था। जिनालयों और जिनप्रतिमाओं को धराशायी करने में कितने बादशाहों ने तो पीछे मुडकर भी नहीं देखा । दूसरी तरफ अनेक मुगल बादशाह श्री जिनेश्वर परमात्मा के सिद्धांत और साधु भगवंतों के जीवन को देखकर बहुत ही प्रभावित होने के प्रसंग भी इतिहास में मिलते हैं।
जिनधर्म की शरण में आए हुए आचार्य जिनप्रभसूरिजी प्रभु के शासन की शोभा बढ़ा रहे थे। जन सभा में धर्म और कर्म की बातें विविध प्रकार से बता रहे थे। सूरिजी की वाणी से प्रभावित बादशाह सुरत्राण उनके प्रति अत्यन्त आदरवाले बने
और समय-समय पर सूरिवर और राजवर की ज्ञानगोष्ठि चलती रहती थी। एक बार अचानक बादशाह सूरिवर को पूछते हैं कि, "गुरुवर ! आपके पवित्र मुख से अनेकबार गिरनार गिरिवर की प्रशंसा सुनी है तो क्या सचमुच ! इस गिरनार गिरिवर का कोई प्रभाव है?"
बादशाह के संशय का समाधान करते हुए सूरिवर कहते हैं, "बादशाह ! गिरनार महातीर्थ की महिमा ही अनोखी है। अरे ! मात्र जैनधर्म ही नहीं परन्तु अन्यधर्मों में भी इसकी अपरंपार महिमा दर्शायी गयी है। इस गिरनार गिरिवर पर हमारे वर्तमान चौबीशी के बाइसवें तीर्थंकर बालब्रह्मचारी श्री नेमिनाथ प्रभु के दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्षकल्याणक हुए हैं।"
बादशाह कहते हैं, "आपके इन पत्थर की प्रतिमाओं और जिनालयों का कोई प्रभाव देखने मिलता है ?"
सूरिजी कहते हैं, "इस जिनबिंब का प्रभाव अनोखा है । इस प्रतिमा का अस्त्र या शस्त्र से छेदन या भेदन नहीं हो सकता । यह प्रतिमा अग्नि में नहीं जल सकती । वज्रमयी यह प्रतिमा देवाधिष्ठित है।"
विस्मित होकर बादशाह ने कहा, "क्या बात करते हो महात्मा !" (सूरिवर के वचन पर शंका के साथ मन में विचार करने लगा कि मजबूत लोहे के सामने इस पत्थर की प्रतिमा की क्या हैंसियत कि उसके सामने टिक सके? इस प्रतिमा की कसौटी अवश्य करनी ही चाहिए।)
समय बीतता गया, बादशाह ने सरिवर से गिरिवर की यात्रा करने की भावना व्यक्त की और राजवैभव के साथ गिरनार