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________________ औपशमिक क्षायिकौ भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्वमौदयिक पारिणामिकौचIR || औपशमिक, क्षायिक, मिश्र (क्षायोपशमिक) औदयिक और पारिणामिक ये पाँच भाव जीव के स्वतत्त्व हैं। द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम्।।२।। उपर्युक्त पाँचों भावों के अनुक्रम से दो नौ, अट्ठारह, इक्कीस और तीन भेद हैं। सम्यक्तव चारित्रे।।३।। औपशमिक भाव के सम्यक्तव और चारित्र ये दो भेद हैं। ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोग वीर्याणि च।४।। क्वलज्ञान, केवलदर्शन, दान, लाभ भोग, उपभोग, वीर्य तथा और चारित्र ये नौ भेद क्षायिक भाव के हैं। सम्क्त्व ज्ञानाज्ञानदर्शनलब्धयश्चतुस्त्रित्रिपंच भेदा: सम्क्त्व चारित्र संयमांसयमाश्च।।५।। चार ज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन, पाँच लब्धि, सम्यक्तव, चारित्र और संयमासंयम ये अट्ठारह भेद क्षायोपशमिक के हैं। गतिकषायलिंगमिथ्यादर्शनाज्ञानासंयता सिद्धलेश्याश्चतुस्त्र्येकैकैकैकषड्भेदाः।।६।। ___ चार गति, चार कषाय, तीन वेद, मिथ्या दर्शन, अज्ञान असंयम, असद्धि छः लेश्या इस तरह कुल मिलकर इक्कीस भेद औदयिक भाव के हैं जीवभव्याभव्यत्वनि च।।७।।
SR No.009950
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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