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________________ एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्थ्य:।।३०।। एक आत्मा में एक साथ एक से लेकर चार ज्ञान तक हो सकते हैं। मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च ।।३१ ।। मति श्रुत और अवधि ये तीनों विपरीत अर्थात् कज्ञान रूप भी होते हैं सदतारविशेषाद्यदृच्छोपलब्धेरुन्मत्तवत् ।।३२ ।। जिस प्रकार उन्मत्त का ज्ञान वास्तविक अवास्तविक के भेद को न जानकर जैसा चाहे वैसा ग्रहण कर लेता है उसी प्रकार विचार शून्य उपलब्धि के कारण से वे ज्ञान भी कज्ञान ही हैं। नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूद्वैवम्भूतानया: नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द समभिरूढ़ और एवं भूत ये नय के सात भेद हैं। ज्ञानदर्शनयोस्तत्वम्, नयानां चैव लक्षणम्। ज्ञानस्य च प्रमाणत्व, मध्यायेस्मिन्निरूपितम्। इति श्रीमदस्वामी विरचिते मोक्षशास्त्रे प्रथमोऽध्यायः।
SR No.009950
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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