________________
D:\VIPUL\B001.PM65 (37)
तत्त्वार्थ सूत्र ++++++++++++++ अध्याय अब बतलाते है किन प्राणियो का कौन जन्म होता है
जरायुजाण्डज-पोतानां गर्भः ||३३||
अर्थ- जरायुज, अण्ड, और पोत इन तीन प्रकार के प्राणियो के गर्भ जन्म होता है। जन्म के समय प्राणियों के ऊपर जाल की तरह जो रुधिर मांस की खोल लिपटी रहती है उसे जरायु या जेर कहते हैं, और उससे जो उत्पन्न होते हैं उसे जरायुज कहते हैं। जैसे मनुष्य बैल वगैरह । जो जीव अण्डे से उत्पन्न होते हैं उसे अण्डज कहते हैं- जैसे कबूतर आदि पक्षी । और जिसके उपर कुछ भी आवरण नही होता तथा जो योनि से निकलते ही चलने फिरने लगता है उसे पोत कहते हैं, जैसे शेर वगैरह। इन तीनो प्रकार के प्राणियों के गर्भ जन्म ही होता है ॥ ३३ ॥
आगे बतलाते हैं कि उपपाद जन्म किसके होता है
देवनारकारणामुपपादः ||३४|| अर्थ- देवों और नारकियों के उपपाद जन्म ही होता है ॥ ३४ ॥ आगे शेष जीवों के कौन जन्म होता है यह बतलाते हैं
शेषाणां सम्मूर्छनम् ||३७||
अर्थ - गर्भ जन्म वाले मनुष्य तिर्यन्वों और उपपाद जन्मवाले देव नारकियों के सिवा बाकी के एकेन्द्रियों, विकलेन्द्रियों और किन्ही पंचेन्द्रिय तिर्यन्चों के सम्मूर्छन जन्म ही होता है ॥ ३५ ॥
अब शरीरों का वर्णन करते हैं
औदारिक- वैक्रियिकाहारक - तैजस-कार्मणानि शरीराणि ||३६||
अर्थ - औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस, कार्मण ये पाँच शरीर हैं। स्थूल शरीर को औदारिक कहते हैं। जो एक, अनेक, सूक्ष्म, स्थूल, हलका, भारी किया जा सके उसे वैक्रियिक शरीर कहते हैं। छठे
**********+49 ***********
तत्त्वार्थ सूत्र +++++++++++++++अध्याय गुणस्थानवर्ती मुनि के द्वारा सूक्ष्म पदार्थ को जानने के लिए, अथवा संयम की रक्षा के लिए, अन्य क्षेत्र में वर्तमान केवली या श्रुत केवल पास भेजने को अथवा अन्य क्षेत्र के जिनालयों की वंदना करने के उद्देश्य से जो शरीर रचा जाता है उसे आहारक शरीर कहते हैं । औदारिक आदि शरीरों को कांति देनेवाला शरीर तेजस कहलाता है। ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों के समूह को कार्मण शरीर कहते हैं ॥ ३६ ॥
जैसे औदारिक शरीर दिखायी देता है वैसे वैक्रियिक आदि शरीर क्यों नही दिखायी देते ? इसका उत्तर देते हैं
परं परं सूक्ष्मम् ||३७||
अर्थ - औदारिक के आगे के शरीर सूक्ष्म होते हैं । अर्थात् औदारिक से वैक्रियिक सूक्ष्म है, वैक्रियिक से आहारक सूक्ष्म है, आहारक से तेज सूक्ष्म है और तेजस से कार्मण सूक्ष्म है ॥ ३७ ॥
यदि आगे आगे के शरीर सूक्ष्म हैं तो उनके बनने में पुदगल के परमाणु भी कम कम लगते होंगे इस आशंका को दूर करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं
प्रदेशतोऽसंख्ये यगुणं प्राक् तैजसात् ||३८||
अर्थ - यहाँ प्रदेश शब्द का अर्थ परमाणु है। परमाणुओं की अपेक्षा से तेजस से पहले के शरीर असंख्यात गुने हैं। अर्थात् औदारिक शरीर में जितने परमाणु हैं उनसे असंख्यात गुने परमाणु वैक्रियिक शरीर में हैं और वैक्रियिक शरीर से असंख्यात गुने परमाणु आहारक शरीर में होते हैं।
शंका- यदि आगे आगे के शरीर मे असंख्यात गुने, असंख्यात गु परमाणु होते हैं तो आगे-आगे के शरीर तो औदारिक से भी स्थूल होने चाहिए । फिर आगे-आगे के शरीर सूक्ष्म होते हैं, ऐसा क्यों कहा ? समाधान - असंख्यात गुने, असंख्यात गुने परमाणुओं से बने होने
******
***+ +++++++50 +++