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(तत्त्वार्थ सूत्र *************** अध्याय - सम्यग्दृष्टियों के कर्म निर्जरा की हीनाधिकता
207 निर्ग्रन्थ के भेद
209 निर्ग्रन्थों में विशेषता का विचार
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212 212
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(तत्त्वार्थ सूत्र 22************अध्याय -D किस कर्म के उदय से कौन परीषह होती है ?
191 एक साथ एक जीव में कितनी परीषह हो सकती हैं?
192 चारित्र के भेद और उनका स्वरूप
193 बाह्य तप के भेद और उनका स्वरूप
194 परीषह और कायक्लेश में अन्तर अभ्यन्तर तप के भेद
195 अभ्यन्तर तप के उपभेदों की संख्या प्रायश्चित के भेद
196 विनय के भेद
197 वैयावृत्य के भेद
198 स्वाध्याय के भेद
198 व्युत्सर्ग के भेद
199 ध्यान का वर्णन
199 ध्यान के भेद
200 आर्तध्यान के भेद और उनके लक्षण
201 आर्तध्यान के स्वामी रौद्रध्यान के भेद और उनके स्वामी
202 धर्मध्यान का स्वरूप शुक्लध्यान के स्वामी
203 शुक्लध्यान के भेद
203 शुक्लध्यान का आलम्बन
204 आदि के दो शक्ल ध्यानों का विशेष कथन
204 वीतर्क का लक्षण
204 वीचार का लक्षण
204 पृथकत्व वितर्क वीचार एकत्व वितर्क सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति समुच्छिन्न क्रिया निवति
दशम अध्याय केवल ज्ञान की उत्पत्ति के कारण मोक्ष का लक्षण और उसके कारण
कर्म के अभाव का क्रम कुछ भावों के अभाव का कथन मुक्तावस्था में शेष रहने वाले क्षायिक भाव
मुक्तावस्थाकी कुछ बातों को लेकर शंका-समाधान मुक्त होते ही ऊर्ध्वगमन ऊर्ध्वगमन में हेतु और दृष्टान्त लोक के अन्त तक ही जाने का कारण मुक्त जीवों में भेद व्यवहार का विचार
क्षेत्र काल गति
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202
लिंग
तीर्थ चारित्र प्रत्येक बुद्ध बोधित ज्ञान अवगाहना अन्तर संख्या अल्प बहुत्व