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(4) समयसारदृष्टान्तमर्म अन्य द्रव्य किसी अन्य द्रव्यके गुणों का उत्पाद नहीं कर सकता। जैसे कि मिट्टी जो कुम्भभावसे याने घड़ेके परिणमनसे उत्पन्न होती है अर्थान परिणमती है । वह मिट्टीके स्वभावसे ही याने मिट्टीकी शक्तिके परिणमन से ही उत्पन्न होती है, कुम्भकारके स्वभावसे उत्पन्न नहीं होती है, क्योंकि यदि वह मिट्टी कुम्भकारके स्वभावसे उत्पन्न होती तो कुम्हार पुरुपके शरीरके आकार घड़ा वनता सो ऐसा तो है नहीं और मिट्टीके गुण धर्म घड़ेमें पाये जाते हैं, अतः कुम्हारके स्वभावको न छूती हुई मिट्टो हो कुम्भभावसे उत्पन्न होती है यही सिद्ध है। इसी प्रकार सभी द्रव्य अपने अपने परिणमनसे पर्यायरूपसे उत्पन्न होते हैं, निमित्तभूत अन्य द्रव्यके स्वभावसे उत्पन्न नहीं होते । आत्मा भी अपने गुण-परिणमनसे पर्यायरूप से उत्पन्न होता है अर्थात रागादि पर्यायरूपमें परिणमता है वह निमित्तभूत अन्य द्रव्यके स्वभावसे उत्पन्न नहीं होता। अतः नव रागादिक भावों के उत्पादक पर द्रव्य है ही नहीं तव किस प्रकार द्रव्यकी ओर आकर्षित होना या क्रोध करना, किसीकी ओर नहीं।
२२१-निन्दा या स्तुतिके वचन भी क्या हैं ? विशिष्ट पुद्गलवर्गणा (भाषावर्गणा) के परिणमन हैं । ये शब्द जीवको नवर्दस्ती नहीं करते हैं कि तुम हमको सुनो और न जीव अपने स्थानसे च्युत होकर उनको जाननेके लिये जाता है । इसका कारण यह है कि किसी भी वस्तुका भाव किसी अन्य द्रव्यके द्वारा उत्पन्न नहीं किया जा सकता। जैसे कि प्रकाशमान दीपकको निमित्त पाकर प्रकाशित हुए घट पटादिक पदार्थोने न तो दीपकको जबर्दस्ती की कि तुम हमको प्रकाशित करो और न दीपक अपने स्थानसे च्युत होकर घट पटादिक पदार्थोको प्रकाशित करनेके लिये जाता है। इसका भी कारण यह है कि पर पदार्थ अन्य पर पदार्थको उत्पन्न करने में असमर्थ है।'
२२२-इसी प्रकार जैसे कि दीपकको घटादि पदार्थ जवर्दस्ती नहीं करते कि हमें प्रकाशित करो और न दीपक अपने स्थानसे च्युत होकर पदार्थोको प्रकाशित करनेके लिये जाना है । उसी प्रकार रूप, रस, गंध,