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(२०) सहजानन्दशास्त्रमालायां कि आस्रवोंसे संपूर्णतया निवृत्ति हो जाती है और पासवोंसे तब तक निवृत्ति होती रहती है जब तक कि विज्ञान धनस्वभाव पूर्ण प्रकट हो जाता
५१इस प्रकार संपूर्ण आस्रवनिवृत्तिका व सर्वथा सम्पूर्ण ज्ञानविकासका समय एक है और तत्त्वज्ञानके अनन्तर व केवलज्ञानसे पहिले भी प्रत्येक क्षण यथायोग्य आत्रवानिवृत्ति व ज्ञानविकास है, उसका भी क्षण एक है । जैसे कि मेघपटलकी निवृत्ति व प्रकाशका विकास दोनों का एक क्षण है।
५२-आस्रवकी निवृत्तिका साधकतम भेदविज्ञान है । भेदविज्ञान में यह प्रकाश रहता है, कि आत्मा कर्मके परिणमनको व नोकर्म (शारीरादि) के परिणमनको करता नहीं है। कर्म व नोकर्मके परिणमनको आत्मा क्यों नहीं करता ? इस कारण कि फर्म व नोकर्म जुदा पदार्थ हैं और आत्मा उन दोनोंसे जुदा पदार्थ है । जैसे घट और कुम्हार ये दो जुद चीज है इस कारण घटके परिणमनको कुम्हार नहीं करता है।
५३-फिर कर्म, नोकर्मके परिणमनको कौन करता है ? कर्म पुद्गलकी पर्याय है व नोकर्म भी पुद्गलकी पर्याय है। कर्म परिणमनका पुद्गलसे व्याप्यव्यापकभाव है । शारीरादि नोकर्म परिणमनका भी पुद्गल से व्याप्यव्यापक भाव है । जिन पुद्गल स्कन्धों का कर्म परिणमन है, वे पुद्गल स्कन्ध कर्मको करते हैं। जिन पुद्गल स्कन्धोंका शारोरादि परिणमन है, वे पुद्गल स्कन्ध शरीरादि नोकर्मको करते हैं। जैसे घट परिणमनको कौन करता है ? घट मिट्टीसे बना हुआ है, जिस मिट्टी पिएड का घट परिणमन हुआ है, वह मिट्टी पिण्ड घट परिणमनको करता है।
५४-कमके परिणाम क्या है ? परिणाम शब्दसे दो ध्वनि निकलती हैं। (१) फल, (२) परिणमन । वस्तुतः कर्मका फल भी कर्मका परिणमन है, फिर भी कर्मके उदयको निमित्त पाकर आत्मामें जो मोह, राग, द्वाप, सुख, दुःख आदि विभाव होते हैं, वे भी कर्मके परिणाम कहे ते हैं । सो इनका कर्मके साथ अन्वय व्यतिरेक है, याने कर्मोदय होने