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समयसारदृष्टान्तमर्म (६ ) जाय क्योंकि जीव और पुद्गल दोनोंका लक्षण भिन्न भिन्न है जीवका लक्षण उपयोग है और पुद्गल सदा उपयोगरहित ही रहता है।
२३-जैसे प्रकाश अंधकारका सदा विरोध है जहां प्रकाश है वहां अधकार नहीं है और जहां अंधकार है वहां प्रकाश नहीं। वैसे उपयोग और अनुपयोगका सदा विरोध है जहां उपयोग है वहां अनुपयोग नहीं और जहां अनुपयोग है वहां उपयोग नहीं। उपयोग जीवमे ही है पुद्गलमें अनुपयोग ही है । इसलिये हे आत्मन् विवेक करो अपनेको ही मेरा यह है ऐसा अनुभव कर।
२४ तात्त्विक वातपर आश्चर्य करके अज्ञानी प्रश्न करता है कि मैं तो यह समझता हूँ कि जो आत्मा है वही शरीर पुद्गल द्रव्य है पृथक कुछ नहीं, यदि ऐसा न हो तो ये स्तुतियां सव मिथ्या हो जावेंगी कि हे भगवन तुमने अपनी क्रांतिसे दशो दिशावोंको स्नान करा दिया, तेजके द्वारा बड़े बड़े तेजास्वियोंके तेजको रोक दिया, रूपके द्वारा मनुष्यो के मनको हर लिया, दिव्यध्वनिसे कानोमें अमृत वरसाया । इसके उत्तरमें ज्ञानी कहते हैं कि जिस प्रकार सोना और चांदी मिलकर एक पिण्ड हो जावें तो भी सोना सोनेमें है चांदी चांदीमे है एकमेक नहीं हो गये, क्योंकि सोनेका स्वभाव पीला है चाँदीका स्वभाव सफेद है लक्षण जुदे जुदे हैं। मात्र एकका व्यवहार है उसी प्रकार आत्मा और शरीरका परस्पर एकक्षेत्रावगाह है तो भी शरीर शरीरमें है आत्मा आत्मामें है दोनो एक नहीं हो जाते, क्योकि दोनोका स्वभाव जुदा है आत्माका स्वभाव उपयोग है
और पुद्गल शरीरका स्वभाव अनुपयोग है । अव रह गई स्तुतिकी बात सो मात्र यह व्ववहारकी वात है जो शरीरकी स्तुतिसे आत्माकी स्तुतिका यत्न किया।
२५-जिस प्रकार चांदीका गुण तो सफेद है और सोनेका गुण पीलापन है सोने में सफेदीका स्वभाव नहीं है फिर भी चाँदी सोनेका एक स्कन्ध होनेपर ऐसा व्यवहार किया जाता है कि यह सोना सफेद है । उसी प्रकार तीर्थकरके शरीरका गुण सफेद खून आदि है, आत्माका गुण उपयोग है