________________
७०] श्रीप्रवचनसारटोका। दोपरहित भोजन करने हैं उनहीके एपणासमिति पलती है।
___ आदाननिक्षेपणसमिनि मूलगुण । णाणुवहिं संजमुवहिं सौचुहि अण्णमप्पमुवर्हि वा । पयदं गहणिक्खेवो समिदी आदाणिवखेवा ॥ १४ ॥
भावार्थ-श्रुतज्ञानमा उपकरण पुस्तकादि. संयमका उपकरण पिच्छिकादि, गौचका उपकरण कमण्डलादि व अन्य कोई संधारा आदि उपकरण इनमेंसे किलीको यदि माधु उठावें या रक्खें तो यत्नके साथ देखकर व पीछीसे झाड़कर उठावें या धरें मो आदाननिक्षेपण समिति मूलगुण है।
१० प्रतिष्ठापनिका समिति मूलगुण । एगते अच्चित्ते दूरे गूढे विसालमविरोहै। उच्चारादिच्चाओ पदिठावणिया हवे समिदी ॥१५॥
भावार्थ:-साधु मल या पिसावको ऐसे स्थानमें त्यागें जो एकांत हो, प्राशुक हो, जिसमें हरितकाय व त्रस न हों, ग्रामसे दूर हो, गृढ़ हो, जहां किसीकी दृष्टि न पड़े, विशाल हो. जिसमें विल आदि न हों, किसीकी जहां मनाई न हो मो प्रतिप्ठापनिका समिति मूलगुण है।
११ चक्षुनिरोध मूलगुण ।। सच्चिताचिचाणं किरियासटाणवण्णभेएसु । रागादिसंगहरणं चपखुणिरोहो हवे मुणिणो ॥ १७ ॥
भावार्थ-स्त्रियों व पुरुषोंके मनोज्ञरूप व अचित्त चित्र मूर्ति आदिके रूप, स्त्री पुरुपोंकी गीत नृत्य वादिन क्रिया, उनके मितर आकार व वस्तुओके वर्ण आदि देखकर उनमें रागद्वेष न करके समताभाव रखना सो चक्षुनिरोध मूलगुण है।