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तृतीयः खण्ड1,
[६३ , १ धूम दोष- साधु यदि भोजनको उसको अनिष्ट जान निंदा करता हुआ ग्रहण करे सो धूम दोष है। इन दोनों दोषोंसे परिणाम संक्लेंशित होजाते हैं।
१ संयोजन दोष-साधु यदि अपनेसे विरुद्ध भोजनको मिलाकर ग्रहण करे जैसे भात पानीको मिलादे, ठंढे भातको गर्म पानीसे मिलावे, रूखे भोजनको चिकनेके साथ या आयुर्वेद शास्त्रमें कहे हुए विरुद्ध अन्नको दूधके साथ मिलावे यह संयोजन दोष है ।
१ प्रमाण दोष-साधु यदि प्रमाणसे अधिक आहार महण करे सो प्रमाण दोष है। प्रमाण भोजनका यह है कि दो भाग तो मोजन करे, १ भाग जल लेचे व चौथाई भाग खाली
स्खे । इसको उल्लंघन करके अधिक लेना सो दोषाहै । ये दोनों दोष रोग पैदा करनेवाले व स्वाध्याय ध्यानादिमें विघ्नकारक हैं। ___ इस तरह उद्गम दोष १६, उत्पादन दोष १६, अशन दोष १०, अंगार दोष १, धूम दोष १, संयोजन दोष १, प्रमाण-दोष:१ इस तरह ४६ दोषोंसे रहित भोजन करना सो.शुद्ध भोजनाहै। यद्यपि उद्गम-दोष गृहस्थके. आश्रय है तथापि साधु यदि मालूम करके व गृहस्थ दातारने दोष किये हैं ऐसी शंका करके फिर भोजन ग्रहण करे तो साधु दोषी है। . ___साधुगण संयम सिद्धिके लिये शरीरको बनाए रखनेके लिये. केवल शरीरको भाड़ा देते हैं ।: साधु छः कारणोंके होनेपर भोज़नको नहीं जाते (१) तीव्र रोग होनेपर (२) उपसर्ग किसी देव, मनुष्य, पशु था अचेतन कृत होनानेपर (३) ब्रह्मचर्यके निर्मल करनेके लिये (४) प्राणियोंकी दयाके लिये यह खयाल करके कि यदि .