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श्रीप्रवचनसारटीका ।
७ उन्मिश्र दोष - मिट्टी, अप्रांशुक जल, हरितकाय पत्र फूल फल आदि, बीज गेहूं जौ आदि, त्रस जीव सजीव हों या निर्जीव' हों इन पांचोंमेंसे किसीसे मिले हुए आहारको लेलेना सो उन्मिश्र - दोष है ।
८ परिणत दोष - जिस पानी या भोजनका वर्ण गंध रस न बदल गया हो जैसे तिलोंके धोवन, चावलके घोवन, चनक -धोवन, घासके धोवनका जल या तप्त जल ठंडा हो यदि अपने वर्णरस गंधको न छोड़े हुए हों अथवा अन्य कोई शाक फलादि • अप्राशुक हो उसको ले लेना सो अपरिणत दोप है। यदि स्पर्शादि बदल गए हों तो दोष नहीं ।
९ लिप्त दोष- गेरू, हरताल, खड़िया, मनशिला, कच्चा आटा व तंदुलका आटा, पराल या घास, कच्चा शाक, कच्चा जल, गीला हाथ, गीला वर्तन: इनसे लिप्त या स्पर्शित वस्तु दिये जाने पर ले लेना सो लिप्त दोष है ।
१० परिजन दोष- या छोटित दोष, जो पात्र बहुतसा भोजन 'हाथसे गिराकर थोड़ासा लेवे तथा दूध दहींको हाथोंके छिद्रोंसे . गिराता हुआ भोजन करे, या दातार द्वारा दोनों हाथोंसे गिराते हुए दिये हुए भोजन - पानकको लेवे, व दोनों हाथों को अलग करके जो खावे व अनिष्ट' भोजनको छोड़कर रुचिवान इष्ट भोजनको लेवे सो परिजन दोष है ऐसे १० प्रकार अंशन दोष जानने ।
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१ अंगार दोष - साधु यदि भोजनको अति लम्पटतांसे उसमें मूर्च्छित होकर ग्रहण करें 'सो' अङ्गार' दोष है ।'''