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४६]. श्रीप्रवचनसारटोका।
उत्यानिका-आगे कहते हैं कि जब निर्विकल्प सामायिक नामके संयममें ठहरनेको असमर्थ होकर साधु उससे गिरता है तब सविकल्प छेदोपस्थापन चारित्रमें आ जाता है
बदसमिदिदियरोधो लोचावस्सकमचेलमण्हाणं | खिदिसयणमदंतयण, ठिदिभोयणमेयम च ॥ ८ ॥ एदे खलु मूलगुणा समणाणं जिणवरेहि पण्णचा। तेसु पमत्तो समणो छेदोपहारगो होदि ॥ ९ ॥ व्रतसमितीन्द्रियरोधो लोचावश्यकमचैलक्ष्यमनानम् । क्षितिशयनमदन्तधावन स्थितिभोजनमेकमेकं च ॥ ८ ॥ ऐते खलु मूलगुणाः श्रमणानां जिनवरीः प्रज्ञप्ताः । तेषु प्रमत्तः श्रमणः छेदोपस्थापको भवति ॥॥ ( युग्मम् )
अन्वय सहित सामान्यार्थ:-( वदसमिदिदियरोधो ) पांच महाव्रत, पांच समिति, पांच इंद्रियोंका निरोध (लोचावस्स) केशलोंच, छः आवश्यक कर्म ( अचेलमण्हाणं ) नग्नपना, स्नान न करना, (खिदिसयणमदतयणं) पृथ्वीपर सोना, दन्तवन न करना (ठिदिभोयणमेयभत्तं च) खडे हो भोजन करना, और एकवार भोजन करना (एदे) ये (समणाणं मूलगुणा) साधुओंके अट्ठाईस मूल गुण (खलु) वास्तवमें (निणवरेहि पण्णत्ता): जिनेन्द्रोंने कहे हैं। (तेसु पमतो) इन मूलगुणोंमें प्रमाद करनेवाला (समणों) साधु (छेदावट्ठावगो) छेदोपस्थापक अर्थात् व्रतके खण्डन होनेपर फिर अपनेको उसमें स्थापन करनेवाला (होदि) होता है। विशेषार्थ-निश्चय नयसे मूल नाम आत्माका है उस आत्माके केवलज्ञानादि अनंत गुणमूल गुण हैं । ये सब मूलगुण उस समय प्रगट