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३६० श्रीप्रवचनसारटोका। इसमें अवगाहन करेंगे वे ही परम सुखी' होंगे | इस शास्त्रमें तत्त्वका सार खूब सूक्ष्म दृष्टि से बता दिया है।
श्री जयसेनाचार्यकी सुगम टीकाके अनुसार हमने अत्यन्त तुच्छ बुद्धिके होते हुए जो भाषामें लिखनेका संकल्प किया था। सो आज मिती आसौज सुदी ५ शुक्रवार वि० सं० १९८१ व वीर निर्वाण सं० २४५० ता० ३ अकटूबर १९२४ के अत्यंत प्रातःकाल सफल हो गया, हम इसलिये श्री अरहंतादि पांच परमेष्टियोंको पुनः पुनः नमन करके यह भावना करते हैं कि इस ग्रंथराजकी ज्ञानतत्त्वदीपिका, ज्ञेयतत्त्वदीपिका, चारित्रतत्त्वदीपिका नामकी तीनों दीपिकाओंसे हमारे व और- पाठक व श्रोताओंके हृदयमें ज्ञानका प्रकाश फैले, जिससे · मिथ्याश्रद्धान मिथ्याज्ञान व मिथ्याचारित्रका अंधकार नाश हो और अभेद रत्नत्रयमई स्वात्मज्योतिका प्रकाश हो। .
शुभं भूयात् ! . शुभं भूयात् !!
शुभं भूयात् ! ! !