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तृतीय खण्ड-1
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करके हमको आहार, औषधि, विद्या तथा प्राणदान करना चाहिये । यह शुभ भाव पुण्यबंधका कारण है ।
श्री वसुनंदी श्रावकाचार में करुणादानको बताया हैअइवुड्ढवालमूयंध व हिरदेस तरीयरो । जह जोगं दायन्त्रं करुणादाणेति मणिऊण ॥ २३५ ॥ भावार्थ - बहुत बूढ़ा, बालक, गूंगा, अंधा, बहिरा,, परदेशी, रोगी, इनको यथायोग्य देना सो करुणादान कहा गया है। पंचाध्यायीम अनुकम्पाका स्वरूप है---
अनुकम्पा क्रिया ज्ञेया सर्वसत्त्वेष्वनुग्रहः । मैत्राभावोऽथ माध्यस्थं नैःशल्यं वैरवर्जनात् ॥ ४४६ ॥ भावार्थ- सर्व प्राणी मात्रपर उपकार बुद्धि रखना व उसका आचरण सो अनुकम्पा कहलाती है, मैत्रीभाव रखना भी दया है, अथवा द्वेष त्याग मध्यमवृत्ति रखना व वैर छोड़कर शल्य या कषाय भाव रहित होना भी अनुकम्पा हैं ।
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शेत्रेभ्यः क्षुत्पिपासादिपीडितेभ्योऽशुभोदयात् ।
दानेभ्यो दद्यादानादि दातव्यं करुणार्णवः ॥ ७३१ ॥ भावार्थ- पात्रोंके सिवाय जो कोई भी दुःखी प्राणी अपने पापके उदयसे भूखें, प्यासे, रोगादिसे पीड़ित हों, दयावानोंको उन्हें दया दान आदि करना चाहिये ॥ ९० !!
उत्थानिका- आगे लौकिक साधु जनका लक्षण बताते हैंfuii gosदो वहदि जदि एहिंगेहि कम्मेहिं । सो लोगिगोदि भणिदो संजमतवसंपजुत्तोवि ॥ ९१ ॥ निद्र्थ प्रत्रजिता वर्तते यहिकैः कर्मभिः स लौकिक इति भणितः स यमतपःस प्रयुक्तोपि ॥ ६१ ॥
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