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श्रीप्रवचनसारटीका |
पदार्थोंका श्रद्धान करता हुआ (असंजढ़ो वा ण णिव्वादि) यदि असम है तो भी निर्वाणको नहीं प्राप्त करता है ।
विशेषार्थ - यदि कोई परमात्मा आदि पदार्थों में अपना श्रद्धान नहीं रखता है तो वह आगमसे होनेवाले मात्र परमात्मा के ज्ञानसे सिद्धि नहीं पासक्ता हैं तथा चिदानन्दमई एक स्वभाव रूप अपने परमात्मा आदि पदार्थोंका श्रद्धान करता हुआ भी यदि विषयों और कषायोंके आधीन रहकर असंयमी रहता है तो भी निर्वाणको नहीं पासक्ता है ।
पदार्थ जो
जैसे किसी पुरुष के हाथमें दीपक है तथा उसको यह निश्चय नहीं है कि यदि दीपकसे देखकर चलूँगा तो कूएंमें मैं न गिरूँगा इससे दीपक मेरा हितकारी है, तो उसके पास दीपक होनेसे भी कोई लाभ नहीं है । तैसे ही किसी जीवको परमागमके आधार से अपने आत्माका ऐसा ज्ञान है कि यह आत्मा सर्व जानने योग्य हैं उनके आकारोंको स्पष्ट जाननेको एक अपूर्व ज्ञान स्वभावको रखनेवाला हैं तौ भी यह निश्चयरूप श्रद्धान नहीं है कि मेरा आत्मा ही ग्रहण करने योग्य है तो उसके लिये दीपकके समान आगम क्या कर सक्ता है ? कुछ भी नहीं कर सक्ता है । अथवा जैसे वही दीपकको रखनेवाला पुरुष अपने पुरुषार्थके नलसे दीपकसे काम न लेता हुआ कूप पतनसे यदि नहीं बचता है तो उसका यह श्रद्धान कि दीपक मेरेको बचानेवाला है कुछ भी कार्यकारी नहीं हुआ, तैसे ही यह जीव श्रद्धान और ज्ञान सहित भी है, परन्तु पौरुषरूप चारित्रके • बलसे रागद्वेषादि विकल्परूप असंयम भावसे यदि अपनेको नहीं
समर्थ ऐसा
यदि उसको