________________
श्रीप्रवचनसारटोका। आलम्बन न छोड़ना चाहिये । वास्तवमें ज्ञानके विना ममत्त्वका नाश नहीं हो सकता है।
श्री पूज्यपाद-महाराज समाधिशतकमें कहते हैंयस्य सस्पन्दमाभाति निष्पन्देन समं जगत् । अप्रज्ञमक्रियाभोगं स समं याति नेतरः ॥ ६७ ॥
भावार्थ-जिसके ज्ञानमें यह चलता फिरता क्रिया करता हुआ जगत ऐसा भासता है कि मानो निश्चल क्रिया रहित है, बुद्धिक विकल्पोंसे शुन्य है तथा कार्य और भोगोंसे रहित एक रूप अपने स्वभावमें है उसीके भावोंमें समता पैदा होती है। दूसरा कोई समताको नहीं प्राप्त कर सक्ता है ।
अतएव यह बात अच्छी तरह सिद्ध है कि साधुपदमें आगम ज्ञानकी बड़ी आवश्यक्ता है ।। ५२ ॥
उत्थानिका-आगे कहते हैं कि जिसको आगमका ज्ञान नहीं है उसके कर्मोका क्षय नहीं होसक्ता है।
आगमहीणो समणो णेवप्पाणं परं वियाणादि । अविजाणतो अत्थे खवेदि कम्माणि किध भिक्खू ॥५३॥
आगमहीनः श्रमणो नैवात्मानं परं विजानाति । अविजाननन् क्षपयति कर्माणि कथं भिक्षुः ॥ ५३ ॥
अन्वय सहित सामान्यार्थः-(आगमहीणो) शास्त्रके ज्ञानसे रहित (समणों) साधु (णेवप्पाणं परं ) न तो आत्माको न अन्यको (वियाणादि) जानता है । ( अत्थे अविजाणतो) परमात्मा आदि पदार्थोंको नहीं समझता हुआ (मिक्खू) साधु (किध) किस तरह (कम्माणि) कर्मोको (खवेदि) क्षय कर सक्ता है।