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तृतीय खण्ड । wommmmmmmmmmmmmmmm
उत्थानिकां-आगे पूर्वमें कहे हुए उपकरणरूप अपवाद. व्याख्यानका विशेष वर्णन करते हैं। उवयरणं जिणंमग्गे लिंग जहजादरूवमिदि भणिदं । गुरुवयणं पि य विणओ सुत्तज्झयणं च पणत्तं ॥ ४१ ।' उपकरणं जिनमार्गे लिंग यथाजातरूपमिति भणितम् । गुरुवचनमपि च विनयः सूत्राध्ययनं च प्राप्तम् ॥४१॥
अन्वय सहित सामान्यार्थ-(निणमग्गे) निनधर्ममें (उवयरणं) उपकरण (जहनादरूवम् लिंग इदि भणिदं) यथाजातरूप नग्न' भेष कहा है (गुरुवयणं पिय) तथा गुरुसे धर्मोपदेश सुनना (विणओ), गुरुओं आदिकी विनय करना (सुत्तज्झयणं चारपण्णत्तं ) तथा शास्त्रोंका पढ़ना भी उपकरण कहा गया है.। . . ...
विशेपार्थ-मिनेन्द्र भगवान के कहे हुए मार्गमें शुद्धोपयोग रूप मुनिपदके उपकारी उपकरण इस भांति कहे गए हैं (१) व्यवहारनयसे सर्व परिग्रहसे रहित शरीरके आकार पुद्गल पिंडरूप' द्रव्यलिंग तथा निश्चयसे भीतर मनके शुद्ध बुद्ध एक स्वभावरूप परमात्माका स्वरूप (२) विकार रहित परम चैतन्य ज्योति स्वरूप परमात्मतत्त्वके बतानेवाले सार और सिद्ध अवस्थाके उपदेशक गुरुके बचन (३) आदि मध्य अन्तसे रहित व जन्म नरा मरणसे रहित निन आत्मद्रव्य के प्रकाश करनेवाले सूत्रोंका पढ़ना परमागमका बांचना (४) अपने ही निश्चय रत्नत्रयकी शुद्धि सो निश्चय विनय और उसके आधाररूप पुरुषोंमें भक्तिका परिणाम सो व्यवहार विनय दोनों ही प्रकारके विनय परिणाम ऐसे चार उपकरण कहे गए हैं ये ही वास्तबमें उपकारी हैं। अन्य कोई कमंडलादि व्यवहारमें व उपचारमें उपकरण हैं ।