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Ammaar
१४८] श्रीप्रवचनसारंटीकी । आप कहोगे कि यदि स्त्रियोंमें पूर्व लिखित दोष होते हैं तो सीता, रुक्षमणी, कुन्ती, द्रोपदी, सुभद्रा आदि जिन दीक्षा लेकर विशेष तपश्चरण करके किस तरह सोलहवें स्वर्गमें गई हैं ? उसका समाधान कहते हैं, कि उनके स्वर्ग जानेमें कोई दोष नहीं है । वे उस स्वर्गसे आकर पुरुष होकर मोक्ष जावेंगी, स्त्रियोंको तंदुभव मोक्ष नहीं है किन्तु अन्यभवमें उनके आत्माको मोक्ष हो इसमें कोई दोष नहीं है । यहां यह तात्पर्य है कि स्वयं वस्तु स्वरूपको ही समझना चाहिये केवल विवाद करना उचित नहीं है, क्योंकि विवादमें रागद्वेषकी उत्पत्ति होती है जिस कारणसे शुद्धात्माकी भावना नष्ट होजाती है। .
भावार्थ-इस गाथाका यह है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यग्चारित्र पालनेपर भी स्त्रियोंके चित्तकी ऐसी दृढ़ता नहीं हो सक्ती है जिससे वे सर्व कर्म नष्टकर तदभव मोक्ष ले सकें ॥३७॥
उत्थानिका-आगे इस विषयको संकोचते हुए स्त्रियोंकी व्रतोंमें क्या स्थिति है उसे समझाते हैं:तम्हा तं पडिसेंचं लिंग तासिं जिणेहिं णिदिदं । कुलरूववओजुत्ता समणीओ तस्समाचारा ॥ ३८॥ तस्मात्तत्प्रतिरूपं लिंग तासां जिनैनिर्दिष्टं । कुलरूपवयोभियुक्ताः श्रामण्यः तासां समाचाराः ॥ ३८॥ __ अन्वयसहित सामान्यार्थ-(तम्हा) इसलिये (तासिं लिंग) उन स्त्रियोंका चिन्ह या भेष (तं पडिरूवं) वस्त्र सहित (जिणेहि णिघिट्ट) जिनेन्द्रोंने कहा है । (कुलरूववओजुत्ता) कुल, रूप, वय करके सहित ( तस्समाचारा ) जो उनके योग्य आचरण हैं उनको पालनेवाली (समणीओ) आणिकाएं होती हैं।