________________
तृतीय खण्ड ।
[१४७
भावार्थ - कर्मभूमी स्त्रियों के अन्तके तीन संहनन नियमसे होते हैं तथा आदिके तीन नहीं होते हैं ऐसा जिनेद्रोंने कहा है ।
.
फिर कोई शंका करता है कि यदि स्त्रियों को मोक्ष नहीं होती है तो आपके मत में किस लिये आर्यिकाओंको महाव्रतोंका आरोपण किया गया है ? इसका समाधान यह है कि यह मात्र एक उपचार कथन है । कुलकी व्यवस्थाके निमित्त कहा है। जो उपचारकथन है वह साक्षात् नहीं हो सक्ता है । जैसे यह कहना कि यह देवदत्त अग्निके समान क्रूर हैं इत्यादि । इस दृष्टांत में अग्निका मात्र दृष्टांत है, देवदत्त साक्षात् अग्नि नहीं । इसी तरह स्त्रियोंके महाव्रतके करीब २ आचरण है, महाव्रत नहीं; क्योंकि यह भी कहा है कि मुख्यके अभाव के होनेपर प्रयोजन तथा निर्मिके वश उपचार प्रवर्तता है ।
यदि स्त्रियोंको तद्भव मोक्ष हो सक्ती हो तो सौ वर्षको दीक्षाको रखनेवाली आर्जिका आज ही दीक्षा लेनेवाले साधुको क्यों वन्दना करती है ? चाहिये तो यह था कि पहले यह नया दीक्षित' साधु ही उसको वन्दना करता, सो ऐसा नहीं है । तथा आपके मत मलि तीर्थंकरको स्त्री कहा है सो भी ठीक नहीं है। तीर्थंकर
ही होते हैं जो पूर्वभवमें दर्शन विशुद्धि आदि सोलहकारण भावनाओं को भाकरके तीर्थंकर नामकर्म बांधते हैं । सम्यग्दृष्टी जीवके स्त्रीवेद कर्मका बन्ध ही नहीं होता है फिर किस तरह सम्यग्दृष्टी स्त्री पर्यायमें पैदा होगा । तथा यदि ऐसा माना जायगा कि मल्लि तीर्थंकर व अन्य कोई भी स्त्री होकर फिर निर्वाणको गए तो स्त्री रूपकी प्रतिमाकी आराधना क्यों नहीं आप लोग करते हैं ? यदि