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श्रीप्रवचनसारटोका ।
करते हुए उनके परिणामों में इतनी चंचलता रहती है कि वे प्रमत्त अप्रमत्त गुणस्थानके ध्यानमें जैसी दृढ़ता चाहिये उसको नहीं प्राप्त कर सक्ती हैं । तथा शरीर में भी ऐसा अस्थिर नाम कर्मका उदय है कि जिससे उनके न चाहनेपर भी शीघ्र ही एकदमसे उनके शरीर में से प्रतिमास तीन दिन तक रक्त वहा करता है। उन दिनों उनका चित्त भी बहुत मलीन होजाता है। इसके सिवाय उनके शरीर में ऐसी योनियां हैं जहां एक श्वासमें अठारह दफे जन्म मरण करनेवाले अपर्याप्त मनुष्य पैदा होते रहते हैं । ये सब कारण निग्रन्थपदके विरोधी हैं ।
उत्थानिका- आगे कहते हैं कि उनके शरीरमें किस तरह लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य पैदा होते हैं:
• लिंग हि य इत्थीणं थणंतरे णाहिकखपदेसेसु । भणिदो सुहुमुप्पादो तासि - कह संजमो होदि ॥ ३ लिंगे च स्त्रोणां स्तनान्तरे नाभिकक्ष प्रदेशेषु । भणितः सूक्ष्मोत्पादः तासां कथं संयमो भवति ॥३६
अन्य सहित सामान्यार्थ - (इत्थीण) स्त्रियोंके (लिंग हि य थणंतरे णाहिकखपदेसेसु) योनि स्थानमें, स्तनोंके भीतर, नाभिमें व बगलोंके स्थानों में (सुसुपादो) सूक्ष्म मनुष्यों की उत्पत्ति (भणिदो) कही गई है (तासि संजमो कह होदि ) इसलिये उनके संयम किस तरह होता है ?
विशेषार्थ - यहां कोई यह शंका करे कि क्या ये पूर्वमें कहे हुए दोष पुरुषों में नहीं होते ? उसका उत्तर यह है कि ऐसा तो नहीं कहा जा सक्ता कि बिलकुल नहीं होते किन्तु स्त्रियोंके भीतर