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११२] श्रीप्रवचनसारटोका । अमावसे कर्मबंध करनेवाला न होगा और यदि प्रमादी होकर हिंसकभाव रखता हुआ विचरेगा तो बाहरी हिंसा हो व कदाचित न भी हो तो भी वह हिंसा सम्बन्धी बंधको प्राप्त करलेगा । कर्मका बंध परिणामोंके ऊपर है बाहरी व्यवहार मात्रपर नहीं है । कहा है, श्री पुरुषार्थसिद्धयुपायमेंसूक्ष्मापि न खलु हिंसा परवस्तुनिवन्धना भवति पुंसः। हिंसायतननिवृत्तिः परिणामविशुद्धये तदपि कार्या ॥ ४ ॥ ____ भावार्थ-यद्यपि परपदार्थके कारणसे जरासी भी हिंसाका पाप इस जीवके नहीं बन्धता है तथापि उचित है कि भावोंकी शुद्धिके लिये उन निमित्तोंको बचावे जो हिंसाके कारण हैं ।
अनगारधर्मामृतमें कहा है:जइ सुद्धस्स य बंधो होहिदि बहिरंगवत्थुजोएण। पत्थि दु अहिंसगो णाम वाउकायादि वधहेदू ॥ (अ० ४)
भावार्थ-यदि बाहरी वस्तुके योगसे शुद्ध वीतरागीके भी बंध होता हों तो वायुकाय आदिका वध होते हुए कोई भी प्राणी अहिसक नहीं होसक्ता है।
पंडित आशाधरजी लिखते हैं:
"यदि पुनः शुद्धपरिणामवतोपि जीवस्य स्वशरीरनिमित्तान्य प्राणिप्राणवियोगमात्रेण बंधः स्यान्न कस्यचिन्मुक्तिः स्यात् , योगिनामपि वायुकायिकादिवनिमित्तसदभावात " ___यदि शुद्ध परिणामधारी जीवके भी अपने शरीरके निमित्तसे होनेवाले अन्य प्राणियोंके प्राण वियोगमात्रसे कर्म बन्ध हो जाता
हो तो किसीको भी मुक्ति नहीं हो सकी है, क्योंकि योगियोंके . द्वारा भी वायु काय आदिका वध होजानेका निमित्त मौजूद है।