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इस ग्रंथके तीन अधिकार हैं जिनमें ज्ञानतत्वदीपिका प्रथम अधिकार प्रकाशित हो चुका है । यह शेयतत्वदीपिका दूसरा अधिकार है । तीसरा चारित्रतत्वदीपिका भी लिखा जाचुका है । केवल मुद्रण होना शेष है। इस अधिकारको वि० संवत १९८०की वर्षातमें पानीपत जिला करनालमें ठहरकर पूर्ण किया था। . इसको प्रकट कराकर जैनमित्र के ग्राहकोंको उपहार में देनेका उत्साह श्रीयुत इच्छाराम कम्पनीवाले लाला बद्रीदासजीके सुपुत्र लाला चिरंजीलालजीने दिखलाया है । इसलिये उनकी शास्त्रभक्ति सराहनीय है। ग्रंथके पाठकोंको उचित है कि इसे रुचि व विचारके साथ पढें, सुनावें तथा इसका मनन करें और यदि कहीं कोई भूल अज्ञान तथा प्रमादसे हो गई हो तो सज्जन पत्र व्यवहार करके हमें सूचित करें हम उनके अत्यन्त आभारी
होगे।
सात शहर, चदावाडी ) वीर सं० २४५१
माघ सुदी 3 ता० १३-१-२५ मगलवार )
जैन धर्मकी उन्नतिका पिपासुब्रह्मचारी सीतलप्रसाद