________________
द्वितीय खंड।
[१९ होती हैं अर्थात वह परमात्म द्रव्य जैसे अपनी शुद्ध 'सत्तासे भिन्न नहीं है एक है, पूर्वमे कहे हुए उत्पाद व्यय ध्रौव्य स्वभावोसे तथा गुण पर्यायोसे संज्ञा लक्षण प्रयोजन आदिकी अपेआसे भेद रूप होनेपर भी उनके साथ सत्ता आदिके भेदको नहीं रखता है, स्वरूपसे ही उसी प्रकारपनेको धारण करता है अर्थात उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप तथा गुणपर्याय म्वरूप रूप परिणमन करता है तेसे ही सर्व द्रव्य अपने अपने यथायोग्य उत्पाद व्यय ध्रौव्य'पनेसे तथा गुण पर्यायोके साथ यद्यपि संना लक्षण प्रयोजन आदिकी अपेक्षा भेट रखते हैं तथापि सत्ता खरूपसे भेद नहीं रखते हैं, खभावसे ही उन प्रकार रूपपनेको आलम्बन करते है, अर्थात् उत्पाद व्यय प्रौव्य खरूप या गुणपर्याय स्वरूप परिणमन करते हैं। ___अथवा जैसे वस्त्र जब स्वच्छ किया जाता है तब अपनी निर्मल पर्यायमे पैदा होता है, मलीन पर्यायसे नष्ट होता है और इन दोनोके आधार रूप वस्त्र स्वभावमे ध्रुव या अविनाशी है तैसे ही अपने ही श्वेतादिगुण तथा मलीन यथा म्यच्छ पर्यायोंके साथ मंज्ञा आदिकी अपेक्षा भेट होनेपर भी सत्ता रूपमे भेद नहीं रखता है, तब क्या करता है? स्वरूपसे ही उत्पाद आदि रूपसे परिणमन करता है तसे ही सर्व द्रव्य परिणमन करते है यह अभिप्राय है ।
भावार्थ----इस गाथामें आचार्यने द्रव्यके तीन लक्षण बताए है । सतरूप, उत्पाट व्यय ध्रौव्यरूप और गुणपर्याय रूप । अमेढकी अपेक्षा द्रव्य जैसे अपने सत स्वभावसे एक है वैसे वह उत्पाद व्यय ध्रौव्य या'गुण पर्यायोसे एक है । भेदकी अपेक्षा वह जैसे सत्रनेको रखता है वैसे वह उत्पादादिको रखता है।